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सकल राष्ट्रीय उत्पाद (Gross National Product/GNP)

 

 सकल राष्ट्रीय उत्पाद (Gross National Product/GNP)

किसी अर्थव्यवस्था में जो भी अन्तिम पदार्थ तथा सेवाएँ एक वर्ष की अवधि में उत्पन्न की जाती हैं उन सभी के बाजार मूल्यों के जोड़ को सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।

 

सकल राष्ट्रीय उत्पाद में अन्तिम वस्तुओं और अन्तिम सेवाओं को राष्ट्रीय उत्पाद के कुल जोड़ में सम्मिलित करते है, न कि वे सभी वस्तुएँ और सेवाएँ जो उत्पन्न हो रही होती हैं। देश के समस्त उत्पाद को ठीक मापने के लिए यह अत्यावश्यक है कि जो भी माल और सेवाएँ उत्पन्न या प्रस्तुत की जा रही हैं, वे केवल एक बार ही गिनी जानी चाहिएँ न कि एक से अधिक बार।

अन्तिम पदार्थों  वे पदार्थ हैं जो अन्तिम उपभोग में प्रयोग होते हैं, न कि फिर से बेचने के लिए और न ही किसी और रूप में बदले जाने के लिए और न ही किसी और पदार्थ के निर्माण के लिए।

जो भी सौदे मध्यवर्ती पदार्थों (intermediate goods) के क्रय-विक्रय के लिए होते हैं, उनको छोड़ दिया जाता है अर्थात् उन्हें सम्मिलित नहीं किया जाता।

मध्यवर्ती पदार्थ वे होते हैं जो या तो उसी दशा में फिर से बेचने के लिए या रूप बदल कर बेचने या किसी और वस्तु के बनाने के लिए खरीदे जाते हैं।

सकल राष्ट्रीय उत्पाद के विषय में अन्य उल्लेखनीय बात यह है कि इसने चालू वर्ष में उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं (currently produced goods and services) का मूल्य ही गिना जाता है। अतः इसमें किसी वर्ष में पुरानी वस्तुओं (second-hand goods) के विक्रय मूल्य को नहीं गिना जाता जैसा कि किसी वर्ष में पुरानी कारों, पुराने स्कुटर, पुराने मकानों के विक्रय मूल्य आदि।

वे वस्तु तथा सेवाएँ जिनको मार्किट में बेचा नहीं जाता उनका उत्पादन प्रायः सकल राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल नहीं किया जाता। उदाहरण:- गृहिणियों के अपने परिवार के सदस्यों के लिए की गई सेवाएँ (Housewives services), व्यक्तियों द्वारा अपने स्वयं लिए की गई सेवाएँ जैसा कि अपने घरों की स्वयं रंग-रोगन करना, अपने बागीचे में स्वय बागवानी (Gardening) आदि के मूल्य को राष्ट्रीय उत्पादन में शामिल नहीं किया जाता है।

इसमें एक अपवाद है। भारत जैसे विकासशील देशों में एक बड़ी संख्या में किसानों द्वारा अपने उत्पादन को मार्किट में न ले जाकर उसको स्वयं उपभोग कर लिया (production for self-consumption) जाता है को राष्ट्रीय उत्पाद में गिना जाता है। भारत एक कृषि प्रधान देश है और कृषि में कार्यरत जनसंख्या का एक बड़ा भाग अपने उत्पादन को मार्किट में नहीं लाता। यदि इस उत्पादन को राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल नहीं किया जाता तो देश की राष्ट्रीय आप आपमूल्यन् (underestimation) होगा। इसलिए इसका प्रचलित कीमतों पर मूल्यांकन करके राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।

अर्थशास्त्री भण्डारों में वृद्धि को निवेश मानते हैं और यह कल्पना कर लेते हैं उत्पादित वस्तुओं के भण्डारों को फर्में स्वयं खरीद लेती हैं। अतः भंडार को भी राष्ट्रीय आय की गणना में शामिल किया जाता है।

वित्तीय प्रकार के क्रय-विक्रय (Financial Transactions):- किसी वर्ष के सकल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना में वित्तीय प्रकार के क्रय-विक्रय को नहीं जोड़ा जाना चाहिए। इस प्रकार के वित्तीय क्रय-विक्रय में शेयरों (share) ऋण-पत्रों (bonds) तथा अन्य प्रतिभूतियों (securities) शामिल हैं। इनके क्रय-विक्रयों को राष्ट्रीय उत्पाद की गणना में शामिल न करने का कारण यह है कि इनके क्रय-विक्रय में केवल शेयर व अन्य प्रतिभूतियों का स्वामित्व (ownership) बदलता है। वे किसी वर्ष विशेष में प्रत्यक्ष रूप से उत्पादन में वृद्धि नहीं करते।

सरकारी हस्तान्तरण भुगतान (Transfer Payments by Government):- सरकार द्वारा प्रदान की गई सामाजिक सुरक्षा भुगतान जैसे बेरोज़गारी भत्ता, बीमारी भत्ता, वृद्ध आयु पैन्शन (old age pension) आदि जैसी भुगतान को राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाता। इन हस्तान्तरण भुगतानों (transfer payments) को GNP में शामिल न करने का कारण यह है कि इनको प्राप्त करने वाले व्यक्ति उस वर्ष के उत्पादन में कोई योगदान नहीं करते अर्थात् सरकार को भुगतानों के बदले में उस वर्ष विशेष में कोई वस्तु अथवा सेवा प्राप्त नहीं होती।

 

निजी हस्तान्तरण भुगतान (Private Transfer Payments):- निजी हस्तान्तरण भुगतान (उदाहरण :- विद्यार्थियों द्वारा अपने माता-पिता से प्राप्त मुद्रा राशि, किसी सम्बन्धी से प्राप्त मुद्रा राशि ) को राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि ये केवल एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तान्तरण है जिसका वर्ष विशेष में उत्पादन से कोई सम्बन्ध नहीं है।

 

सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) के तीन दृष्टिकोण (Three Approaches to Gross National Product)

 

सकल राष्ट्रीय उत्पाद को निम्न 3 विभिन्न दृष्टिकोणों से समझा और मापा जाता है :-

(1) उत्पादन अथवा मूल्य-वृद्धि दृष्टिकोण (Production or Value-added Approach)

(2) व्यय दृष्टिकोण (Expenditure Approach)

(3) आय दृष्टिकोण (Income Approach)

 


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