वाकाटक वंश ✍ गुप्त वंश के समकालीन ✍ विष्णुवृद्धि गोत्र के ब्राह्मण ✍ मूल निवास :- विदर्भ या बरार ✍ पुराणों में प्रवीर नामक शासक का उल्लेख , जो प्रवरसेन प्रथम था | इसने 60 वर्षों तक शासन किया। इसने 4 अश्वमेघ यज्ञ किए। ✍ लेख व दानपत्र :- प्रभावती गुप्ता का पूना ताम्रपत्र प्रवरसेन द्वितीय का रिद्धपुर ताम्रपत्र प्रवरसेन द्वितीय की चमक प्रशस्ति हरिषेण का अजंता गुहाभिलेख ✍ पूना व रिद्धपूर के ताम्रपत्र वाकाटक वंश के संबंधों पर जानकारी प्राप्त होती है । ✍ पहले ये सातवाहनों के अधीन बरार के स्थानीय शासक थे। ✍ सातवाहनों के पतन के बाद इन्होंने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर ली। ✍ प्रमुख शासक :- विन्ध्यशक्ति (लगभग 255 ई. से 275 ई. तक) प्रवरसेन प्रथम (लगभग 275 ई. से 335 ई. तक) प्रवरसेन के 4 पुत्र थे , जिन्होंने अलग-अलग शाखा स्थापित की । प्रवरसेन की मृत्यु के बाद वाकाटक साम्राज्य 2 शाखाओं (प्रधान शाखा व बासीम या वत्सगुल्म शाखा) में स्पष्ट रूप से विभाजित हो गया : - 1. प्रधान शाखा :- रूद्रसेन प्रथम (लगभग 335 ई. से 360 ई. तक) पृथ्वीसेन प्रथम (लगभग 360 ई. से 385 ई. तक) रूद्रसेन द्वितीय ...