सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

भारतीय संविधान एवं राजव्यवस्था लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

1858 ईस्वी का भारत शासन अधिनियम

इसे " भारत को अच्छा बनाने वाला अधिनियम " के नाम से भी जाना जाता है। ✍️अधिनियम की पृष्ठभूमि- 12 फरवरी 1858 को लॉर्ड पामर्स्टन ने दोहरे शासन के दोष को दूर करने के लिए संसद के सम्मुख विधेयक प्रस्तुत किया। किन्हीं करणों से पामर्स्टन को त्यागपत्र देना पड़ा, जिसके बाद लॉर्ड डरबी प्रधानमंत्री बने, जिसके काल में प्रस्तुत विधायक 2 अगस्त 1858 को रानी विक्टोरिया हस्ताक्षर के बाद पारित किया गया, जिसे भारत सरकार अधिनियम 1858 कहा गया। ✍️अधिनियम का उद्देश्य- 1. 1857 के विद्रोह जैसी घटना की पुनरावृति को रोकना 2. प्रशासनिक व्यवस्था को स्थापित करना  3. भारत का उपयोग ब्रिटिश औपनिवेशिक में करना महारानी विक्टोरिया के एक राजकीय घोषणा द्वारा भारत का शासन कंपनी के हाथों से लेकर ब्रिटिश राजशाही को सौंप दिया गया, जिसकी घोषणा 1 नवंबर, 1858 को इलाहाबाद में लॉर्ड कैनिंग ने की। इस समय ब्रिटिश की महारानी विक्टोरिया थी। इसका मुख्य उद्देश्य प्रशासनिक मशीनरी में सुधार था, जिसकी निम्नलिखित विशेषताएं थी-  ✍️ गवर्नर जनरल के भारत में ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य...

1853 ईसवी का चार्टर एक्ट

1853 का राज लेख/चार्टर एक्ट इसे भारतीयों द्वारा कंपनी के प्रतिक्रियावादी शासन की समाप्ति की मांग तथा गवर्नर जनरल  लॉर्ड डलहौजी द्वारा कंपनी के शासन में सुधार हेतु प्रस्तुत रिपोर्ट के संदर्भ में  पारित किया गया। 👉 इसके तहत  गवर्नर जनरल की परिषद के विधायी एवं प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया गया।  गवर्नर जनरल की परिषद में 6 पार्षद जोड़े गए, जिन्हें विधान पार्षद तथा इसे भारतीय विधान परिषद या केंद्रीय विधान परिषद कहा गया। [6 नए सदस्य - बंगाल, बंबई, मद्रास तथा आगरा प्रांत में प्रत्येक से एक-एक सदस्य, एक मुख्य न्यायाधीश तथा एक कनिष्ठ न्यायाधीश।] 👉 विधि निर्माण हेतु भारत के लिए एक अलग 12 सदस्यीय विधान परिषद की स्थापना की गई।   विभिन्न क्षेत्रों में प्रांतों के प्रतिनिधियों को इसका सदस्य बना कर  सर्वप्रथम क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व का सिद्धांत लागू किया गया।   👉विधि को अधिनियम बनने के लिए गवर्नर जनरल की अनुमति आवश्यक थी। इन विधियों को गवर्नर जनरल वीटो कर सकता था। 👉 विधि सदस्यों को गवर्नर जनरल की परिषद का पूर्ण सदस्य बना दिया गया। ...

1833 ई. का चार्टर एक्ट

1833 ईस्वी का चार्टर एक्ट ब्रिटिश भारत के केंद्रीयकरण की दिशा में यह एक निर्णायक अधिनियम था। [नोट:- भारत में संविधान निर्माण का आंशिक संकेत इस चार्टर में दिखाई देता है।] अधिनियम की विशेषताएं ✍️20 वर्षों हेतु कंपनी का शासन पुन: बढ़ा दिया गया। ✍️बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया, जिसे सभी नागरिक और सैन्य शक्तियां प्रदान की गई। [इस प्रकार इस राजलेख के द्वारा देश की शासन प्रणाली का केंद्रीयकरण कर दिया गया।] लॉर्ड विलियम बैंटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बने । ✍️कंपनी के सारे व्यापारिक अधिकार(चाय व चीन के साथ व्यापार सहित) समाप्त कर दिए गए तथा अब कंपनी का कार्य ब्रिटिश सरकार की तरफ से मात्र भारत पर शासन करना रह गया। ✍️सपरिषद् गवर्नर जनरल को पूरे भारत के लिए कानून बनाने का अधिकार प्रदान किया गया,किंतु नियंत्रक-मंडल इस कानून को अस्वीकृत कर स्वयं कानून बना सकता था। ✍️ गवर्नर जनरल की परिषद को राजस्व के संबंध में पूर्ण अधिकार प्रदान करते हुए, गवर्नर जनरल को संपूर्ण देश के लिए एक ही बजट तैयार करने का अधिकार दिया गया। ✍️ इसके अंतर्गत नये बनाए जाने वाले...

1813 ईस्वी का चार्टर अधिनियम

1813 ईस्वी का चार्टर अधिनियम 👉 कंपनी के अधिकार पत्र को 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया। 👉 चीन से व्यापार तथा चाय की व्यापार के अलावा कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर दिए गए। अब सभी ब्रिटिश लोग व्यापार कर सकते थे (चाय व चीन के साथ व्यापार को छोड़कर)। 👉 इस एक्ट के द्वारा पहली बार ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार की अनुमति दी गई। 👉 भारतीयों के साहित्य, शिक्षा के प्रोत्साहन हेतु 1 लाख ₹ प्रतिवर्ष खर्च करने की व्यवस्था की गई। 👉 स्थानीय स्वायत्तशासी संस्थाओं को करारोपण का अधिकार दिया गया। कर नहीं देने पर दंड की व्यवस्था की। 👉कलकत्ता, बंबई और मद्रास सरकारों द्वारा निर्मित विधियों का ब्रिटिश संसद द्वारा अनुमोदन अनिवार्य कर दिया गया। 👉 ब्रिटिश सम्राट की स्वीकृति से कंपनी को गवर्नर जनरल, गवर्नरों तथा प्रधान सेनापतियों की नियुक्ति का अधिकार दिया गया। 👉भारत में आकर बसने तथा व्यापार करने के लिए आने वाले अंग्रेजों को लाइसेंस लेना अनिवार्य कर दिया गया।  Charter Act of 1813 AD 👉Company's charter was extended to another 20 years. 👉Apart ...

1793 ईस्वी का चार्टर एक्ट

1793 ईस्वी का चार्टर एक्ट 👉 कंपनी के व्यापारिक अधिकारों को 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया। 👉 नियंत्रण मंडल (board of control) के सदस्यों तथा कर्मचारियों के वेतन आदि की भारतीय राजस्व से देने की व्यवस्था की गई। 👉 प्रत्येक प्रांत का शासन एक गवर्नर तथा तीन सदस्यों की कौंसिल को सौंप दिया गया। प्रांतीय काउंसिल के सदस्य केवल वे ही व्यक्ति हो सकते थे, जो कंपनी के कर्मचारियों के रूप में कम से कम 12 वर्षों तक भारत में काम कर चुके हों। 👉 ब्रिटिश भारतीय क्षेत्रों में लिखित विधियों द्वारा प्रशासन की नींव रखी गई तथा सभी कानूनों और नियमों की व्याख्या का अधिकार न्यायालय को प्रदान किया गया। 👉इस एक्ट के तहत गवर्नर जनरल  को अपनी परिषद के निर्णयों को अस्वीकृत करने की शक्ति पुन: दे दी गई और इसे आगे आने वाले गवर्नरों के लिए भी विस्तृत कर दिया गया। (यह शक्ति सर्वप्रथम लार्ड कार्नवालिस को दी गई थी।) 👉 मुख्य सेनापति का गवर्नर जनरल की परिषद का स्थाई सदस्य होने का अधिकार समाप्त हो गया। (बेशर्त कि उसे उसी रूप में नियुक्त किया गया हो।) 👉 प्रांतीय गवर्नरों को भी अपनी परिषद के निर्णय के विर...

1786 ईस्वी का एक्ट

1786 ईस्वी का  एक्ट 👉 इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल को विशेष परिस्थितियों में अपने परिषद के निर्णय को निरस्त कर अपने निर्णय को लागू करने का अधिकार प्रदान किया गया। 👉 गवर्नर जनरल को प्रधान सेनापति की शक्तियां भी प्रदान की गई। 👉 उक्त दोनों अधिकार सर्वप्रथम प्राप्त  लार्ड कार्नवालिस को प्राप्त हुए। Act of 1786 AD 👉By this act, the Governor General was empowered to implement his decision by repealing the decision of his council under special circumstances.  👉 The Governor General was also given powers of the commander-in-chief. 👉Both the above rights were first obtained to Lord Cornwallis.

1784 ईस्वी का पिट्स इंडिया एक्ट

पिट्स इंडिया एक्ट - 1784. ई  👉 इस एक्ट में पहली बार भारत में कंपनी के अधीन क्षेत्रों को ब्रिटिश अधिपत्य क्षेत्र कहा गया। 👉 ब्रिटिश सरकार को भारत मेंं कंपनी के कार्यों तथा प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान किया गया अर्थात कंपनी के मामलों में पहली बार ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण स्थापित हुआ। 👉 यह अधिनियम कंपनी द्वारा अधिग्रहित भारतीय राज्य क्षेत्रों पर ब्रिटिश ताज के स्वामित्व के दावे का पहला वैधानिक दस्तावेज था, जिसका शीर्षक था " भारत में ब्रिटिश अधिकाराधीन क्षेत्र "। अधिनियम की विशेषताएं 👉 इसके द्वारा द्वैध शासन का प्रारंभ हुआ। 👉 व्यापारिक मामलों के लिए कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स (निदेशक बोर्ड) तथा राजनीतिक मामलों (सैनिक, असैनिक व राजस्व संबंधितों) हेतु बोर्ड ऑफ कंट्रोलर (नियंत्रण बोर्ड) का गठन कर राजनीतिक और वाणिज्य कार्यों को अलग-अलग कर दिया गया। यह व्यवस्था 1858 ई. तक जारी रही। 👉 बोर्ड ऑफ कंट्रोल (नियंत्रण बोर्ड) में 6 सदस्य होते थे। चांसलर ऑफ एक्सचेंजर, 1 राज्य सचिव तथा उनके द्वारा नियुक्त 4 प्रिवी काउंसिल के सदस्य। इन सदस्यों की नियुक्ति और पदच्युत...

1781 ई. का एक्ट ऑफ सेटलमेंट

1781 ई. का Act of settlement(बंदोबस्त कानून) 👉 1773 ई. के रेगुलेटिंग एक्ट के दोषों को दूर करने के लिए ब्रिटिश संसद के प्रवर समिति के अध्यक्ष एडमंड बर्क के सुझाव पर इस एक्ट का प्रावधान किया गया। 👉 इसके अन्य  नाम - संशोधनात्मक अधिनियम (amending act) , बंगाल जुडीकेचर एक्ट 1781 इस एक्ट की विशेषताएं:- 👉कलकत्ता के सभी निवासियों को सर्वोच्च न्यायालय के अधिकर क्षेत्र के अंतर्गत कर दिया गया। 👉 इसके तहत कलकत्ता सरकार को बंगाल, बिहार और उड़ीसा के लिए भी विधि बनाने का अधिकार दे दिया गया। अब कलकत्ता की सरकार को विधि बनाने की दो श्रोत प्राप्त हो गए:-  1. रेगुलेटिंग एक्ट के तहत कलकत्ता प्रेसिडेंसी के लिए 2. एक्ट ऑफ सेटलमेंट के अधीन बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा के दीवानी प्रदेशों के लिए 👉 सर्वोच्च न्यायालय के लिए आदेशों और विधियों के संपादन में भारतीयों के धार्मिक व सामाजिक रीति-रिवाजों तथा परंपराओं का ध्यान रखने का आदेश दिया गया अर्थात् हिंदुओं व मुसलमानों के धर्मानुसार मामले तय करने का प्रावधान किया गया । 👉 सरकारी अधिकारी की हैसियत से किए गए कार्यों के लिए कंपनी ...

1773 ई. का रेगुलेटिंग एक्ट

📃 1773 ई. का रेगुलेटिंग     👉 1772 ई. में कंपनी के कर्मचारियों की गलत प्रवृत्ति के कारण कंपनी को हुई क्षति पर रिपोर्ट देने के लिए तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री ' लार्ड नार्थ' द्वारा गठित 'गुप्त समिति ' की सिफारिश पर पारित एक्ट को 1773 ई. का रेगुलेटिंग एक्ट की संज्ञा दी गई।  इसके तहत पहला कदम ब्रिटेन की संसद को भारत पर विधि बनाने के अधिकार पर बल दिया गया था। (I.A.S. (Pre) Opt. Pol. Science 1993) 👉 भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित व नियंत्रित करने की दिशा में पहला कदम। 👉 इसके तहत पहली बार कंपनी के प्रशासनिक और राजनीतिक कार्यों को मान्यता मिली। 👉 इसके तहत ईस्ट इंडिया कंपनी पर संसदीय नियंत्रण स्थापित करने का प्रथम प्रयास किया गया। 👉 इसके द्वारा भारत में केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी गई। 👉इसका मुख्य उद्देश्य कंपनी के कार्यों को भारत तथा ब्रिटेन दोनों स्थानों पर नियंत्रित करना तथा कंपनी में व्याप्त दोषों को समाप्त करना था। 👉 कंपनी के संपूर्ण प्रशासन के सुपरविजन हेतु इंग्लैंड में 2 संस्थाएं थी- 1. निदेशक मंडल(Court of of directors)  2. स्वत्व...

1726 ईस्वी का राजलेख

1726 ईस्वी का राजलेख इसके तहत कलकात्ता, बंबई तथा मद्रास प्रेसिडेंसीयों के गवर्नर तथा उसकी परिषद को विधि बनाने की शक्ति प्रदान की गई, जो पहले कंपनी के इंग्लैंड स्थित विद्युत बोर्ड को प्राप्त थी।  यह सीमित थी क्योंकि - (1) यह ब्रिटिश विधियों के विपरीत नहीं हो सकती थी। (2) यह तभी प्रभावित होंगी जब इंग्लैंड स्थित कंपनी का निदेशक बोर्ड अनुमोदित कर दे। Charter Act of 1726 AD  Under this, the Governor of Calcutta, Bombay and Madras Presidencies and its Council were empowered to make laws, which was previously with the Company's Electricity Board based in England.  It was limited because -  (1) It could not be contrary to British statutes.  (2) It shall be affected only when the Board of Directors of the England-based company approves.

1600 ईस्वी का राजलेख

  1600 ईस्वी का राजलेख 👉 इसके तहत कंपनी को 15 वर्षों के लिए पूर्वी देशों में व्यापार करने का एकाधिकार दिया गया। 👉 यह राजलेख महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने  31 दिसंबर, 1600 ई. को जारी किया। 👉 कंपनी के भारत शासन की समस्त शक्तियां एक गवर्नर(निदेशक), एक उप-गवर्नर (उप-निदेशक) तथा उसकी 24 सदस्यीय परिषद को सौंप दी गई तथा कंपनी के सुचारू प्रबंधन हेतु नियमों तथा अध्यादेश को बनाने का अधिकार दिया गया। 👉 ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के समय इसकी कुल पूंजी  30133 पौण्ड थी तथा इसमें कुल 217 भागीदार थे। 👉 कंपनी के शासन को व्यवस्थित करने हेतु कलकत्ता, बंबई तथा मद्रास को प्रेसीडेंसी नगर बना दिया गया तथा इसका शासन प्रेसीडेंसी व उसकी परिषद् करती थी। 👉 महारानी एलिजाबेथ ने ईस्ट इंडिया कंपनी को लॉर्ड मेयर की अध्यक्षता में पूर्वी देशों में व्यापार करने की आज्ञा प्रदान की थी। 👉 आंग्ल- भारतीय विधि- संहिताओं के निर्माण एवं विकास की नींव 1600 ई. के चार्टर से प्रारंभ हुई। 👉 ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपना कार्य सूरत से प्रारंभ किया। 👉 इस समय भारत में मुगल सम्राट अकबर का शास...

संवैधानिक विकास

संवैधानिक विकास 👉 31 दिसंबर 1600 को महारानी एलिजाबेथ प्रथम के चार्टर के माध्यम से अंग्रेज भारत आए।  👉 प्रारंभ में इनका मुख्य उद्देश्य व्यापार था जो ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से शुरू किया गया।  👉 मुगल बादशाह 1764 में बक्सर के युद्ध में विजय के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी को दीवानी अधिकार दिए। 👉 1765 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल,बिहार एवं उड़ीसा की दीवानी अधिकार प्राप्त कर लीए। 👉 1858 ईस्वी में हुए सैनिक विद्रोह ऐसे भारत शासन का दायित्व सीधा ब्रिटिश ताज ने ले लिया। 👉 सर्वप्रथम आजाद भारत हेतु संविधान की अवधारणा एम. एन. राय के द्वारा 1934 में दी गई।  👉 एम. एन. राय के सुझावों को अमल में लाने के उद्देश्य से 1946 में सविधान सभा का गठन किया गया। 👉 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ। 👉 संविधान की अनेक विशेषता ब्रिटिश शासन चली गई तथा अन्य देशों से भी, जिनका क्रमवार विकास निम्न प्रकार से हुआ- 1. कंपनी का शासन (1773 ई. - 1858 ई. तक)  2. ब्रिटिश ताज का शासन (1858 ई. – 1947 ई. तक) Constitutional development 👉The Brit...