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मुद्रा स्फीति तथा मुद्रा संकुचन का तुलनात्मक अध्ययन

मुद्रा स्फीति तथा मुद्रा संकुचन का तुलनात्मक अध्ययन मुद्रा स्फीति तथा मुद्रा संकुचन दोनों का अध्ययन करने पर स्पष्ट होता है कि इसके दुष्प्रभावों की व्यापकता और गम्भीरता को ध्यान में रखते हुए उन पर प्रभावी नियन्त्रण की आवश्यकता होती है।  प्रो. कीन्स ने मुद्रा मूल्य में इन दोनों प्रकार के परिवर्तनों की घातकता को स्पष्ट करते हुए लिखा है- " मुद्रा प्रसार अन्यायपूर्ण है और मुद्रा संकुचन अनुपयुक्त । इन दोनों में सम्भवतः मुद्रा संकुचन अधिक बुरा है क्योंकि आज के निर्धन विश्व में बेरोजगारी को बढ़ावा देना विनियोक्ताओं को अप्रसन्न करने के बजाय कहीं अधिक बुरा है। "  मुद्रा प्रसार और मुद्रा संकुचन के सम्बन्ध में प्रो. सेलिगमेन ने भी अपना मत इन शब्दों में व्यक्त किया है कि '' बढ़ते हुए तथा गिरते हुए मूल्यों के कारण देश के आर्थिक ढाँचे में एक ऐसी अस्थिरता आ जाती है कि कृषि , उद्योग तथा व्यापार की दशा अस्थिर हो जाती है और समाज के विभिन्न वर्गों को विभिन्न अनुपात में लाभ-हानि होती है। ऊंची और नीची कीमतों में उतना नुकसान नहीं होता , जितना कीमतों में निरन्तर चढ़ने-उतरने के कारण होता...

मुद्रा संकुचन या अवस्फीति(Deflation)

💸  मुद्रा संकुचन या अवस्फीति (Deflation) मुद्रा संकुचन बिल्कुल मुद्रा - स्फीति की एक विपरीत स्थिति है। मुद्रा संकुचन में मूल्य सामान्य स्तर से भी बहुत नीचे गिर जाते हैं।   प्रो . पीगू   के अनुसार ' ' मुद्रा संकुचन मूल्यों के गिरने की वह स्थिति है जो उस समय उत्पन्न होती है   जब किसी समाज की मौद्रिक आय की तुलना में वहाँ पर वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन अधिक तेजी से बढ़ता है जिससे मुद्रा की क्रय   शक्ति बढ़ जाती है अथवा वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य कम हो जाते हैं। ''   प्रो . कीन्स के शब्दों में   '' मुद्रा संकुचन वह स्थिति है जिसके द्वारा देश में मुद्रा की मात्रा और उसकी माँग के बीच का अनुपात इतना कर दिया जाए कि उससे मुद्रा की विनिमय शक्ति बढ़ जाए तथा वस्तुओं के मूल्य गिर जाएँ। '' इन परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि मुद्रा   संकुचन निम्न परिस्थितियों में दृष्टिगोचर होता है:-   (i) मौद्रिक आय घटती हो पर व...