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मौर्य कालीन कला

  मौर्य कालीन कला ईसा-पूर्व छठी शताब्दी में गंगा की घाटी में बौद्ध और जैन धर्मों के रूप में नए धार्मिक और सामाजिक आंदोलनों की शुरूआत हुई। ये दोनों धर्म श्रमण परंपरा के अंग थे। दोनों धर्म जल्द ही लोकप्रिय हो गए क्योंकि वे सनातन धर्म की वर्ण एवं जाति व्यवस्था का विरोध करते थे।  उस समय मगध एक शक्‍तिशाली राज्य के रूप में उभरा और उसने अन्य राज्यों को अपने नियंत्रण में ले लिया।  ईसा पूर्व चौथी शताब्दी तक मौर्यों ने अपना प्रभुत्व जमा लिया था और ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी तक भारत का बहुत बड़ा हिस्सा मौर्यों के नियंत्रण में आ गया था।  मौर्य सम्राटों में अशोक एक अत्यंत शक्‍तिशाली राजा हुआ, जिसने ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में बौद्धों की श्रमण परंपरा को संरक्षण दिया था।  नोट:–जिस परम्परा ने वेदों को प्रमाणित न मानकर आत्मज्ञान, आत्मविजय एवं आत्म-साक्षात्कार पर विशेष बल दिया वह श्रमण परम्परा कहलाती है। धार्मिक पद्धतियों के कई आयाम होते हैं और वे किसी एक पूजा विधि तक ही सीमित नहीं होतीं। उस समय यक्षों और मातृदेवियों की पूजा भी काफ़ी प्रचलित थी। इस प्रकार पूजा के अनेक रूप विद्यमा...

सिंधु घाटी की कलाएँ

सिंधु घाटी की कलाएँ सिंधु नदी की घाटी में कला का उद्भव ईसा-पूर्व तीसरी सहस्राब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ था।  इस सभ्यता के विभिन्न स्थलों से कला के जो रूप प्राप्‍त हुए हैं, उनमें प्रतिमाएँ, मुहरें, मिट्टी के बर्तन, आभूषण, पकी हुई मिट्टी की मूर्तियाँ आदि शामिल हैं।  उस समय के कलाकारों में निश्‍चित रूप से उच्च कोटि की कलात्मक सूझ-बूझ और कल्पनाशक्‍ति विद्यमान थी। उनके द्वारा बनाई गई मनुष्यों तथा पशुओं की मूर्तियाँ अत्यंत स्वाभाविक किस्म की हैं क्योंकि उनमें अंगों की बनावट असली अंगों जैसी ही है।  मृण्‍मूर्तियों में जानवरों की मूर्तियों का निर्माण बड़ी सूझ-बूझ और सावधानी के साथ किया गया था। सिंधु घाटी सभ्यता के दो प्रमुख स्थल हड़प्पा और मोहनजोदड़ो नामक दो नगर थे, जिनमें से हड़प्पा उत्तर में और मोहनजोदड़ो दक्षिण में सिंधु नदी के तट पर बसे हुये थे। ये दोनों नगर सुंदर नगर नियोजन की कला के प्राचीनतम उदाहरण थे। इन नगरों में रहने के मकान, बाजार, भंडार घर, कार्यालय, सार्वजनिक स्नानागार आदि सभी अत्यंत व्यवस्थित रूप से यथास्थान बनाए गए थे। इन नगरों में जल निकासी की व्यवस्था भी काफी वि...