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प्राकृतिक रेशे

प्राकृतिक रेशे

रेशे दो प्रकार के होते हैं -

1. प्राकृतिक रेशे -
वे रेशे जो पौधे एवं जंतुओं से प्राप्त होते हैं, प्राकृतिक रेशे कहलाते हैं। 
उदाहरण- कपास,ऊन,पटसन, मूॅंज,रेशम(सिल्क) आदि।

2. संश्लेषित या कृत्रिम रेशे -
मानव द्वारा विभिन्न रसायनों से बनाए गए रेशे कृत्रिम या संश्लेषित रेशे कहलाते हैं। 
उदाहरण-रियॉन, डेक्रॉन,नायलॉन आदि।

प्राकृतिक रेशों को दो भागों में बांटा गया हैं-

(1)पादप रेशे - वे रेशे जो पादपों से प्राप्त होते हैं। 
उदाहरण - रूई, जूूट, पटसन ।

रूई -
यह कपास नामक पादप के फल से प्राप्त होती है।
हस्त चयन प्रक्रिया से कपास के फलों से प्राप्त की जाती है।
बिनौला-कपास तत्वों से ढका कपास का बीज।
कपास ओटना-कंकतन द्वारा रूई को बनौलों से अलग करना।

[Note:- बीटी कपास (BT Cotton) एक परजीवी कपास है। यह कपास के बॉल्स को छेदकर नुकसान पहुँचाने वाले कीटों के लिए प्रतिरोधी कपास है। कुछ कीट कपास के बॉल्स को नष्ट करके किसानों को आर्थिक हानि पहुँचाते हैं। वैज्ञानिकों ने कपास में एक ऐसे बीटी जीन को प्रवेश कराकर बीटी कपास पौधे प्राप्त किए हैं जो एक विषैले पदार्थ का निर्माण करते हैं।
जब कीट कपास के गोलों को खाते हैं जो विषैला पदार्थ कीट के अन्दर पहुँच जाता है और कीट को मार देता है। ऐसे रूपान्तरित कपास पौधों को ही BT कपास कहते हैं।]

जूट या पटसन -
यह पटसन पादप के तने से प्राप्त किया जाता है।
पुष्पन अवस्था में काट कर इसके तने को कुछ दिनों तक जल में डुबोय रखा जाता है। गल जाने पर तने से पटसन तंतुतों को हाथों से अलग कर दिया जाता है, बाद में वस्त्र या अन्य वस्तु बनाने हेतु धागे में परिवर्तित कर देते हैं। 
उपयोग- पायदान,  चटाई, बैग आदि बनाने में।
मूॅंज -
यह घास पादप से प्राप्त होती है।
वनस्पति शास्त्र में इसे सेकेरम मूॅंजा कहते हैं।
यह एकबीजपत्री पादप है।
यह बीकानेर, नागौर, सीकर, झुंझुनू, अजमेर आदि जिलों में पाई जाती है।
उपयोग- मूॅंज के सरकण्डों  का उपयोग झोपड़े, परंपरागत फर्नीचर (मुड्डे, टेबल आदि), सीरकी, चारपाई, इको फ्रेंडली खिलौने, सजावटी सामान, रस्सियां आदि बनाने में।
सूती रेशों को उपयोग में लाने से पूर्वे निम्न प्रक्रिया से गुजारा जाता है- कताई, बुनाई, रंगाई, छपाई ।

कताई - पादपों से प्राप्त तंतुओं से धागा बनाने की प्रक्रिया।
इन्हें लंबाई में खींचते हुए ऐंठते रहते हैं।
कताई के लिए उपयोग में लिए जाने उपकरण - हस्त तकुआ(तकली), चरखा।
बुनाई - धागे से वस्त्र निर्माण की प्रक्रिया। वस्त्र निर्माण विविंग(धागे के दो सेटों को आपस में व्यवस्थित करके वस्त्र निर्माण की क्रिया) और निटिंग(एकल धागे से वस्त्र निर्माण की क्रिया) द्वारा करते हैं।

रंगाई - वस्त्रों को रंगने की प्रक्रिया।

छपाई - वस्त्रों पर चित्र छापने की प्रक्रिया।
राजस्थान में छपाई कला का सर्वोत्तम स्वरूप सांगानेर (जयपुर) मेंं है। अन्य स्थान- जोधपुर, जैसलमेर, उदयपुर, बाड़मेर, भीलवाड़ा, पाली, बगरू, अकोला (चित्तौड़) आदि।
इन सभी स्थानों पर ठप्पे द्वारा छपाई की जाती है, जिसे भॉंत भी कहते हैं।
ठप्पा लकड़ी तथा धातु का बना होता है। ठप्पे बनने के बाद तिल्ली के तेल में रात भर डुबोकर, तैयार रंग को पानी से गीले स्पंच पर डालकर ठप्पे को उस पर रख देते हैं, जिससे उस पर रंग चढ़ जाता है। बाद में सही आकृति व लाइन में ठप्पा लगाते हैं।
छपाई हेतु सफेद एवं सूती वस्त्रों (मलमल, रुबिया, वायर, पॉपलीन, लट्ठा, रेशमी वस्त्र आदि) का ही प्रयोग होता है।

[नोट:- सूती कपड़े को रंगते समय रंग पक्का करने के लिए रंग के घोल में नमक डाला जाता है।]

सूती वस्त्र की विशेषता -
1. ठंडा होता है।
2. नमी सोख लेता है।
3. इसे रंगना आसान होता है।
बॅंधेज - रंगाई करने से पूर्व में डिजाइन बनाने के लिए वस्त्र को धागे से बॉंध दिया जाता है और बाद में रंगा जाता है। इससे बॉंध गए स्थान को छोड़कर शेष स्थान रंगीन हो जाताा है। अलग-अलग रंग से रंगनेे हेतु बॅंधेज को हमेशा हल्केे रंगों से गहरे रंगों की ओर बढ़ाते हैं।
(2) जांतव रेशे - वे रेशे जो जंतुओं से प्राप्त होते हैं।
उदाहरण - ऊन, रेशम।

ऊन
यह भेड़, बकरी, ऊंट, याक, खरगोश आदि के बालों से प्राप्त होती है। तंतु रूपी मुलायम बाल ही ऊन बनाने हेतु उपयोग में लिए जाते हैं।
ऊन निर्माण प्रक्रिया -
कटाई - शरीर से बालों को उतारना।
अभिमार्जन - बालों से चिकनाई, धूल को हटाने की प्रक्रिया (धोकर)।
छॅंटाई - विभिन्न गठन वाले बालों को अलग-अलग करना। बालों के कोमल व फुले हुए छोटे-छोटे रेशे बर कहलाते हैं, जिनसे ऊन बनाते हैं।
रंगाई - विभिन्न रंगों में ऊन को रंगना।
रीलिंग - रेशों को सीधा कर सुलझाना व फिर लपेटकर धागा बनाना।

ऊन के उपयोग - स्वेटर व ऊन वस्त्र बनाने में
[नोट:- जम्मू कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्रों में कश्मीरी बकरी या अंगोरा नस्ल की बकरी से ऊन प्राप्त की जाती है। यह उन अत्यधिक मुलायम होती है। इससे बनने वाले शॉल पश्मीना शॉल कहलाते हैं।]
[नोट:- हिमाचल प्रदेश  उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, गुजरात आदि राज्यों में ऊन हेतु भेड़ पालन किया जाता है।]

रेशम (silk)
यह रेशम कीटों से प्राप्त होती है।
रेशम कीट का पालन सेरीकल्चर कहलाता है।
रेशम कीट शहतूत के वृक्ष पर पाले जाते हैं
रेशम कीट से रेशम प्राप्त करने की प्रक्रिया

रेशम कीट के जीवन चक्र की कोकून अवस्था( कोकून अवस्था में झिल्लीयां प्यूपा अवस्था में बदल जाती हैं और प्यूपा रेशम कीट बनकर अपना जीवन चक्र पूर्ण कर लेता है) में  धूप या गर्म पानी या भाप में रखा जाता है, जिससे रेशम प्राप्त होता है।

रेलिंग - रेशम कीट से धागा बनाने या रेशम प्राप्त करने की यह प्रक्रिया।
कताई - रेशों की कताई कर धागा प्राप्त करने की क्रिया।
वस्त्र - बुनकरों द्वारा धागे से बनाए जाते हैं।
देश का 90% रेशम उत्पादन कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु से प्राप्त होता है।
[नोट:- सर्वाधिक रेशम उत्पादन करने वाला देश चीन है।]

रेशम वस्त्र की विशेषताएं
1. सलवटें नहीं पड़ती हैं।
2. चमकीले व आकर्षक होते हैं।
3. वजन में हल्के होते हैं।



Natural fibers


👉Classification of fibres-

 two types of fibers

1. Natural Fibers -

Those fibres which are obtained from plants and animals both are called Natural fibres. Example: -wool, cotton, jute, moonj, silk etc.

2.Artificial fibers or Manmad fibres  or synthetic fibers -

Those fibres which are made by human with chemicals are called Artificial fibre or manmade or synthetic fibres.
Examples-Rayon, Dacron, Nylon etc.

👉Natural fibers are obtained from plants or animals-



(1) Plant Fibers - Fibers that are obtained from plants.

Examples - cotton, jute, jute.

Cotton
We get cotton from cotton plant.
Cotton is usually picked by hand.
We get cotton from cotton balls.
Fibres are then separated from the seeds by combing.
This process is called ginning of cotton.
[Note: - BT cotton is a genetically modified crop. It stands for Bacillus thuringiensis a soil bacterium which contains a toxic gene called BT gene. The aim is to make the cotton crop resistant to bollworm. The gene is inserted into the cotton seed through genetic engineering. Now, the toxin is not harmful to the plant but BT gene becomes part of it.]

Jute or Jute -

Jute fibre is obtained from the stem of jute plant. For obtaining jute fibre its plant is harvested when it starts flowering. The stems of the harvested plants are immersed in water for a few days. The stems got rotten and fibres are separated by hands. To make fabrics all these fibres are first converted into yams.
Uses - For making notches, mats, bags etc.


 Moonj(botanical name- Sacchuram Moonja) -
Moonj is obtained from the moonj grass.
It is a monocot plant.
It's generally found in Bikaner, Nagaur, Sikar, Jhunjhunu, Ajmer etc.
Uses - The stems of this plant is used to make huts, traditional furniture (muds, tables etc.), seerki, cots, eco friendly toys, decorative items, ropes etc.

The use of cotton fibers is carried out through the following process - spinning, weaving, dyeing, printing.

Spinning - the process of making thread from fibers obtained from plants.
They are stretched and pulled in length.
Tools used for spinning - Hasta Takua (Spindle), Charkha.

Weaving - The process of making yarn from fibre.  Clothing manufacturing is done by weaving (The process of arranging two sets of yarns together to make a fabric) and knitting (A single yam is used to make a piece of fabric).

Dyeing - The process of dyeing fabrics.

Printing - the process of printing pictures on textiles.
Sanganer (Jaipur) in Rajasthan has it name in art of printing.  Other centres of printing in Rajasthan are Jodhpur, Udaipur, Barmer, Bhilwara, Pali, Bagru, Aakola (Chittorgarh) etc.
Here printing is done by wooden blogs.
Printing of clothes block, it is also called bhant.
They are made up of wood or metal alloys.  After making impressions they are kept in seshame oil for anight. Firstly colours are form in a container for printing. Now this colour is poured on a sponge. Now printing block is kept on sponge so that it takes the colour. Printing is done in fixed pattern from these blocks. This printing is done on borders or on whole cloth.
White and cotton fabrics (muslin, rubia, wire, poplin, log, silk cloth, etc.) are used for printing.
[Note: - When dyeing a cotton cloth, salt is added to the color solution to ensure its color.]

The specialty of cotton clothes -
1. It is cold.
2. Absorbs moisture
3. It is easy to paint.

Bandage(Tie And Dye) - Before dyeing, the fabric is tied with a thread to make the design and then dyed.  This makes the rest of the space colorful except for the bonded space.  To color with different colors, always increase the bandage from lighter colors to darker colors.

(2) Animal fibers - fibers obtained from animals.
Examples - wool, silk.

Wool -
It is obtained from the hair of sheep, goat, camel, yak, rabbit etc.  Fibers like soft hairs are used to make wool.

Wool Manufacturing Process -

Shearing - removing hair from the body.
Scouring - the process of lubricating the hair, removing dust (by washing).
Sorting - Different types of hairs are then Sorted. Small, soft and puffed fibres called Burr, are sorted separately.The fibres obtained from this method are spin in thread.
Dyeing - dyeing wool in various colors.
Reeling - The process of making threads straight and making its roll is called Reeling.

Use of wool - Long fibres are used in sweater while short fibres are used in making woollen clothes.
[Note: - Jammu and Kashmir wool is obtained from Kashmiri goat or Angora species of goat. This wool is softer and the shawls made from its fibre are called Pashmina shawls.]
[Note: - Sheep are reared for wool in the states of Himachal Pradesh, Uttarakhand, Arunachal Pradesh, Rajasthan, Punjab, Gujarat etc.]

Silk
Silk is Natural fibre obtained from silkworm.
Rearing of silk moth for obtaining silk is known a Serlculture.
Silk moth resides on mulberry plant and eats its leaves.
Life cycle of slkworm
The cocoon stage of the silkworm's life cycle (in the cocoon state the membranes change to the pupa stage and the pupa complete their life cycle by becoming a silkworm) is kept in sunlight or hot water or steam, from which silk is obtained.

Railing - This process of making thread or getting silk from silkworm.
Spinning - The process of obtaining yarn by spinning fibers.
Clothing - made by weavers with thread.

90% of the country's silk production comes from Karnataka, Andhra Pradesh and Tamil Nadu.
[Note: - China is the largest silk producing country.]

Features of silk clothing -
1. There are no creases.
2. They are bright and attractive.
3. Are light in weight.








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