सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP): आय दृष्टिकोण (Income Approach to GNP)
मुद्रा के चक्रवात प्रवाह (circular flow of income) से ज्ञात होता है कि वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन पर किया गया कुल व्यय उनके उत्पादन में योगदान करने वाले परिवारों व व्यक्तियों को उत्पादन के लिए साधन प्रदान करते हैं को मज़दूरी, किराया, ब्याज तथा लाभ के रूप में आय प्रवाहित होती है। यदि इन सभी प्रकार की आयों का जोड़ कर लिया जाए तो हमें कुल राष्ट्रीय आय प्राप्त होती है। किन्तु इससे सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) ज्ञात करने के लिए हमें एक वर्ष की उत्पादन प्रक्रिया में हुए पूँजी ह्रास (depreciation) तथा उत्पादकों द्वारा दिए अप्रत्यक्ष कर (indirect taxes) को भी गणना में शामिल करना होता है।
निम्न विश्लेषण में इन विभिन्न प्रकार की आयों तथा पूँजी ह्रास और अप्रत्यक्ष करों की विवेचना करेंगे:–
1. कर्मचारियों के प्रतिफल अथवा मज़दूरियों व वेतन (Compensation of Employees or Wages and Salaries):- कर्मचारियों के प्रतिफल में सबसे बड़ा वर्ग मज़दूरियों तथा वेतन (Wages and salaries) का है जो निजी क्षेत्र तथा सरकार द्वारा अपने श्रमिकों अथवा कर्मचारियों को उनके द्वारा श्रम की पूर्ति करने के लिए प्रदान करते हैं। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि कर्मचारियों के प्रतिफल में वस्तुओं के रूप में प्रदान की गई मज़दूरी (wages in bind) भी शामिल होती है। उदाहरण:– प्रतिरक्षा और पुलिस कर्मचारियों (defence and police employees) को दिए जाने वाला राशन (ration, free lunch, free accommodation)। इसके अलावा मज़दूरी तथा वेतन में सभी प्रकार के भत्ते (allowances) जैसे कि City Compensatory allowance, house rent allowance, Vacation allowance भी मजदूरी तथा वेतन में शामिल किए जाते हैं। नियोक्ताओं (employees) द्वारा दिया गया बोनस (bonus), कमीशन (commission) भी मजदूरी अथवा वेतन में शामिल होता है।
2. नियोक्ताओं के द्वारा सामाजिक सुरक्षा की स्कीमों में अंशदान (Employees’ Contribution to Social Security Schemes):- इसमें नियोक्ताओं द्वारा अपने कर्मचारियों की दुर्घटना बीमा (Casualty insurance) जीवन बीमा, अंशदायी प्रावीडेण्ट फण्ड (CPF) तथा पैन्शन फण्ड आदि की स्कीमों में जो अंशदान करते हैं, वे भी कर्मचारियों की प्रतिफल में शामिल होते हैं।
किराया (Rent):- अन्य महत्त्वपूर्ण प्रकार की आय भूमि तथा अन्य सम्पत्तियों पर अर्जित किराया है। किराया दो प्रकार की सम्पत्तियों पर दिया जाता है :–
(1) भूमि
(2) मशीनरी तथा भूमि पर बनाई गई इमारतों अथवा भवनों को दूसरों को प्रयोग के लिए देने पर
राष्ट्रीय आय के लेखांकन में भूमि पर इमारतों (buildings) के कुल किराये में से इमारतों का किराया घटा कर शुद्ध भूमि पर किराया ही इस संगठक में शामिल किया जाता है और शेष को लाभ अथवा ब्याज की मद्दों में गिना जाता है।
Self-occupied houses तथा owned occupied buildings पर मार्किट दर से किरायों का मूल्यांकन करके (imputed rent) उसे भी इस आय में जोड़ा जाता है।
ब्याज (Interest):- ब्याज वह आय है जो निजी व्यवसायों द्वारा उन्हें वित्त अथवा मुद्रा-पूँजी प्रदान करने वालों को प्राप्त होती है। चूँकि आजकल अधिकतर उत्पादन कार्य ऋण लिए हुए वित्त से सम्पन्न होता है, इसलिए ब्याज की आय का महत्त्व बहुत बढ़ गया है।
यह उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा सार्वजनिक ऋण पर दिए गए ब्याज (interest on public debt) को किसी वर्ष की सकल राष्ट्रीय आय (GNP) में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि चालू वर्ष में इसके बदले में सरकार को कोई वस्तु अथवा सेवा प्राप्त नहीं होती। सरकार द्वारा किसी वर्ष सार्वजनिक ऋण पर दिए जाने वाले ब्याज को हस्तान्तरण भुगतान (transfer payments) माना जाता है और इसलिए इसे चालू वर्ष की आय में शामिल नहीं किया जाता।
लाभ (Profits):- लाभ उद्यमकर्ता की आय है। यह आय उद्यमकर्ताओं को उत्पादन कार्य संगठित करने, उसमें निहित जोखिम एवं अनिश्चितता वहन करने के लिए प्रतिफल के रूप में मिलता है। परन्तु लाभ एक अवशेष आय (residual income) साधनों को आय पहले से निश्चित दर से है जबकि अन्य प्रकार की आय संविदागत (contractual) होती हैं अर्थात् अन्य कर आता है वह उसका लाभ है।
जहाँ तक निगमित फर्मों (Corporate Firms) के लाभ का सम्बन्ध है उनके द्वारा अर्जित लाभ को निम्न तीन भागों में बाँटा जाता है:-
(1) लाभांश (dividends) :- जो शेयर होल्डरों को दिए जाते हैं।
(2) निगमित लाभ कर (corporate profit tax)
(3) गैर-वितरित लाभ (undistributed profits)
स्वयं-रोज़गार प्राप्त व्यक्तियों की मिश्रित आय (Mixed Income of Self-employed):- पारिवारिक क्षेत्र में (Household Sector) में अनेक उद्यमकर्ता जैसे कि किसान, लघु उद्योगपति, दुकानदार, मरम्मत की दुकानें, लघु व्यवसायी तथा अन्य स्वयं-रोज़गार प्राप्त व्यक्तियों जैसे डॉक्टर, वकील आदि द्वारा सर्जित आयों की स्थिति में लाभ, किराया, मज़दूरी, ब्याज जैसी आयों में अन्तर करना बहुत कठिन होता है और न ही ये लोग अपने आय-व्यय का उपयुक्त रिकॉर्ड रखते हैं। भारत जैसे विकासशील देशों में एक परिवार के सदस्य अपने औद्योगिक उद्यमों में बिना किसी मज़दूरी के कार्य करते हैं। अर्थशास्त्री कृषि, लघु उद्योगों, दुकानों तथा स्वयं-रोज़गार प्राप्त व्यक्तियों जैसे डॉक्टर, वकील आदि की स्थिति में सम्पत्ति से प्राप्त आय (अर्थात् किराया, लाभ तथा ब्याज) और श्रम से प्राप्त आय (अर्थात् मज़दूरी व वेतन) में अन्तर नहीं करते। इस समस्या के कारण ही इस दशा में “स्वयं-रोज़गार प्राप्त व्यक्तियों की मिश्रित आय” (Mixed Income of Self- employed) की धारणा का प्रयोग किया जाता है। अतः स्वयं रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की समस्त आय तथा गैर निगमित उद्यमों (unincorporated enterprises) की कुल आयों को इस वर्ग में गिना जाता है। गैर-निगमित उद्यमों की जहाँ-कहीं भूमि और इमारतों के किराये, श्रमिकों की मजदूरी व वेतन वित्तीय साधनों पर दिए गए ब्याज में अन्तर किया जा सकता है, उस दशा में इनके केवल लाभों को ही स्वयं-रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की मिश्रित आय में जोड़ा जाता है।
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