💸 मुद्रा अपस्फीति(Disinflation)
जब मुद्रा-स्फीति के कारण मूल्य-स्तर असाधारण रूप से बढ़ जाता है तो अर्थव्यवस्था में बढ़ते मूल्यों से निराशा छा जाती है। उपभोक्ता वर्ग कराहने लगता है तो जान-बूझकर कीमतों को घटाकर सामान्य स्तर पर लाने की जो नीति अपनाई जाती है उसे मुद्रा-अपस्फीति कहा जाता है।
अतः मुद्रास्फीति के दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए जान बूझकर जो मुद्रा और साख की मात्रा में कमी की जाती है उसे मुद्रा अपस्फीति की संज्ञा दी जाती है। यह मुद्रा स्फीति के दोषों के निराकरण हेतु एक सुधारवादी प्रक्रिया है यद्यपि मुद्रा संकुचन और मुद्रा अपस्फीति दोनों में मुद्रा व साख की मात्रा में कमी होती है पर पहले में कमी परिस्थितिवश है, जबकि दूसरे में कमी जान-बूझकर है। पहले में स्थिति बिगड़ती है, दूसरी सुधार के लिए है, दोनों में मौलिक अन्तर है।
मुद्रा संकुचन अथवा अवस्फीति (Deflation) और मुद्रा अपस्फीति (Disinflation) में अन्तर
यद्यपि दोनों में मुद्रा व साख की मात्रा में कमी होने से समानता लगती है पर वास्तव में दोनों में निम्नलिखित मौलिक अन्तर है: -
1. उद्देश्य-मुद्रा:- अपस्फीति का एक निश्चित उद्देश्य मुद्रा-स्फीति के दुष्प्रभावों को दूर करने का होता है जबकि मुद्रा-संकुचन परिस्थितियों की अनिश्चित देन है।
2. प्रारम्भ:- मुद्रा अपस्फीति का प्रारम्भ मुद्रास्फीति की दुःखद सीमा (चरम सीमा) से होता है और सामान्य स्तर तक रहता है जबकि मुद्रासंकुचन का प्रारम्भ सामान्य स्तर की सुखद स्थिति से गिरते मूल्यों की दु:खद अवस्था की ओर चलता है जो भयंकर मन्दी के कुचक्र में बदल जाता है।
3. विधि:- मुद्रा अपस्फीति एक ऐच्छिक एवं जानबूझकर अपनाई गई निश्चित नीति होती है जबकि मुद्रा संकुचन एक अप्रत्याशित एवं अनिश्चित स्थिति का द्योतक है।
4. नियन्त्रण:- मुद्रा अपस्फीति पूर्णतः नियन्त्रित एवं ऐच्छिक नीति का परिणाम है जबकि मुद्रा संकुचन एक दीर्घकालीन संकट की स्थिति है जिसका नियन्त्रण बहुत ही कठिन होता है।
5. प्रभाव:- मुद्रा अपस्फीति के प्रभाव सुखद होते हैं जबकि मुद्रा-संकुचन के प्रभाव दु:खद होते हैं। जहाँ मुद्रा अपस्फीति रोजगार, मूल्यों आदि में स्थायित्व द्वारा मुद्रास्फीति के दुष्प्रभावों को दूर करने की प्रक्रिया है। वहाँ मुद्रा-संकुचन बेकारी, अनैतिकता और अस्थिरता उत्पन्न करता है।
मुद्रा-अपस्फीति के उपाय (Measures for Disinflation):- जो उपाय मुद्रास्फीति के नियंत्रण के लिए अपनाये जाते हैं जो मुद्रा-अपस्फीति के अन्तर्गत योजनाबद्ध तरीके से किए जाते हैं। मुद्रा-अपस्फीति एक सुधारवादी प्रक्रिया (Corrective Process) है जिसमें मुद्रास्फीति को चरम सीमा से सामान्य स्तर पर लाने का प्रयास किया जाता है। इसमें मुद्रा तथा साख पर नियन्त्रण, उत्पादन सावाद, हीनार्थ प्रवन्ध पर नियन्त्रण, बचतों की प्रेरणा, आयातों में वृद्धि एवं निर्यातों पर रोक, करारोपण में वृद्धि, फिजूल खर्चों पर रोक आदि उपाय प्रमुख हैं।
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