संविधान सभा की आलोचना
आलोचकों ने विभिन्न आधारों पर संविधान सभा की आलोचना की है। ये आधार हैं:–
1. यह प्रतिनिधि निकाय नहीं थीः–
आलोचकों ने दलीलें दी हैं कि संविधान सभा प्रतिनिधि सभा नहीं थी क्योंकि इसके सदस्यों का चुनाव भारत के लोगों द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर नहीं हुआ था।
2. संप्रभुता का अभावः–
आलोचकों का कहना है कि संविधान सभा एक संप्रभु निकाय नहीं थी क्योंकि इसका निर्माण ब्रिटिश सरकार के प्रस्तावों के आधार पर हुआ। यह भी कहा जाता है कि संविधान सभा अपनी बैठकों से पहले ब्रिटिश सरकार से इजाज़त लेती थी।
3. समय की बर्बादीः–
आलोचकों के अनुसार, संविधान सभा ने इसके निर्माण में जरूरत से कहीं ज्यादा समय ले लिया। उन्होंने कहा कि अमेरिका के संविधान निर्माताओं ने मात्र 4 माह में अपना काम पूरा कर लिया था। निराजुद्दीन अहमद, संविधान सभा के सदस्य, ने इसके लिए अपनी अवमानना दर्शाने के लिए प्रारूप समिति हेतु एक नया नाम गढ़ा। उन्होंने इसे 'अपवहन समिति (drifting committee)' कहा। अन्य संविधान निर्माताओं द्वारा लिया गया समय:–
4. कांग्रेस का प्रभुत्वः–
आलोचकों का आरोप है कि संविधान सभा में कांग्रेसियों का प्रभुत्व था। इस संदर्भ में, अमेरिका के संविधान विशेषज्ञ ग्रेनविले ऑस्टिन ने टिप्पणी की, "संविधान सभा एक दलीय देश का एक दलीय निकाय है। सभा ही कांग्रेस है और कांग्रेस ही भारत है।"
5. वकीलों और राजनीतिज्ञों का प्रभुत्वः–
यह भी कहा जाता है कि संविधान सभा में वकीलों और नेताओं का बोलबाला था। उन्होंने कहा कि समाज के अन्य वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला। उनके अनुसार, संविधान के आकार और उसकी जटिल भाषा के पीछे भी यही मुख्य कारण था।
6. हिंदुओं का प्रभुत्वः–
कुछ आलोचकों के अनुसार, संविधान सभा में हिंदुओं का वर्चस्व था। लॉर्ड विसकाउंट ने इसे 'हिंदुओं का निकाय' कहा। इसी प्रकार विंस्टन चर्चिल ने टिप्पणी की कि, संविधान सभा ने 'भारत के केवल एक बड़े समुदाय' का प्रतिनिधित्व किया।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
ब्लॉग पढ़ने के लिए धन्यवाद। यदि कोई उत्तम सुझाव अथवा शिक्षा से संबंधित कोई अन्य टॉपिक जिसको आप जानने के लिए उत्सुक है तो नीचे कमेंट करके बताएं। यदि आपको कोई गलती नजर आ रही है या कोई संदेह है तो भी आप कृपया कमेंट करके अवश्य बताएं।। धन्यवाद।।