🧑💻उपभोक्ता व्यवहार सिद्धांत
उपभोक्ता के निर्णय लेने की प्रक्रिया, उसके व्यवहार को समझने और पूर्वानुमान लगाने हेतु विकसित सिद्धांत।
उद्देश्य:–
प्रस्तुत इकाई का उद्देश्य यह बताना है कि किस प्रकार उपभोक्ता वर्ग ऐसी स्थिति में उपभोग संबंधी निर्णय लेता है जहाँ उसे बाज़ार दिए गए होते हैं, और वह अपने उपभोग में फेरबदल कर बाज़ार मूल्यों को प्रभावित नहीं कर सकता है। इसको पढ़ने के बाद आप :–
• किसी भी उपभोक्ता का इष्टतम अधिमान निर्धारित कर सकेंगे;
• स्पष्ट कर सकेंगे कि किस प्रकार मूल्य प्रभाव आय प्रभाव और प्रतिस्थापन प्रभाव में वियोजित किया जा सकता है; और
• वैयक्तिक माँग वक्र निर्धारित कर सकेंगे।
प्रस्तावना:–
आमतौर पर देखा जाता है कि किसी उपभोज्य वस्तु हेतु बाज़ारी कुल माँग वक्र, अन्य चीज़ों के दिए होने पर, अधोमुखी प्रवण होता है। हमारी समस्या सभी वैयष्टिक उपभोक्ताओं की किसी उपभोज्य वस्तु हेतु इसके पीछे आर्थिक युक्तिमूलकता का अन्वेषण करना है। बाज़ार माँग मूलतः उपभोक्ता वर्ग द्वारा किसी उपभोज्य वस्तु हेतु माँग के अभिलक्षणों पर निर्भर करती है, और किसी एक उपभोक्ता की किसी उपभोज्य वस्तु हेतु माँग उपभोक्ता के व्यवहार पर निर्भर करती है। स्पष्टतः, माँग नियम के पीछे आर्थिक युक्तिमूलकता के अन्वेषण हेतु हम उपभोक्ता व्यवहार के विश्लेषण से आरंभ करेंगे।
मूल प्रसंग:–
उपभोक्ता व्यवहार के विश्लेषण हेतु विभिन्न दृष्टिकोण हैं। परंतु सभी दृष्टिकोणों में यह माना जाता है कि उपभोक्ता समझदार होता है। इसका अर्थ है कि उपभोक्ता का उद्देश्य सभी वस्तु-समूहों के बीच से एक वस्तु-समूह चुनकर अपने लाभ अर्थात् उपयोगिता को अधिकतम करना होता है (बशर्ते मौद्रिक आय और वस्तुओं के मूल्य उपभोक्ता को दिए गए हों)।
उपयोगिता संबंधी उपभोक्ता अधिमान:–
उपभोक्ता उपयोगिता को मापे बिना उसे अधिकतम नहीं कर सकते। अतः, उपयोगिता एक परिमेय अवधारणा ही होनी चाहिए। यह मापन भिन्न-भिन्न उपागमों में भिन्न-भिन्न तरीके से किया जाता है। परंपरागत प्राधार में हमारे पास उपयोगिता संबंधी दो प्रकार के मापदंड हैं :–
- गणनात्मक विश्लेषण
- क्रमात्मक विश्लेषण
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