राष्ट्रीय महिला आयोग
National Commission for Women
Site:- www.ncw.nic.in
एक सांविधिक निकाय है।
30 अगस्त, 1990 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली।
पहले आयोग का गठन 31 जनवरी, 1992 को हुआ जिसकी अध्यक्ष श्रीमती जानकी पटनायक थीं।
दूसरे आयोग का गठन जुलाई, 1995 में किया गया जिसकी अध्यक्ष डा0 (श्रीमती) मोहिनी गिरि थीं।
तीसरे आयोग का गठन जनवरी, 1999 में किया गया जिसकी अध्यक्ष श्रीमती विभा पारथसारथी थीं ।
चौथे आयोग का गठन जनवरी, 2002 में किया गया और सरकार ने अध्यक्ष के रूप में डा0 पूर्णिमा आडवाणी को नामित किया।
पांचवे आयोग का गठन फरवरी, 2005 में किया गया जिसकी अध्यक्ष डा0 गिरिजा व्यास थीं।
छठे आयोग का गठन अगस्त, 2011 में किया गया जिसकी अध्यक्ष श्रीमती ममता शर्मा थीं।
सातवें आयोग का गठन 2014 में किया गया हें जिसकी अध्यक्ष सुश्री ललिता कुमारमंगलम हैं ।
✍️आयोग की संरचना
धारा 3
राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनिमय, 1990
(भारत सरकार का 1990 का अधिनियम संख्या 20)
केन्द्रीय सरकार, राष्ट्रीय महिला आयोग के नाम से ज्ञात एक निकाय का गठन करेगी जो इस अधिनियम के अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग और समनुदिष्टित कृत्यों का पालन करेगा।
यह आयोग निम्नलिखित को मिलकर बनेगा :-
केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट एक अध्यक्ष, जो महिलाओं के हित के लिए समर्पित हो।
केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसे योग्य, सत्यनिष्ठ और प्रतिनिष्ठित व्यक्तियों में से नामनिर्दिष्ट पांच सदस्य जिन्हें विधि या विधान, व्यवसाय संघ आंदोलन, महिलाओं की नियोजन संभाव्यताओं की वृद्धि के लिए समर्पित उद्योग या संगठन के प्रबंध, स्वैच्छिक महिला संगठन (जिनके अंतर्गत महिला कार्यकर्ता भी हैं), प्रशासन, आर्थिक विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा या सामाजिक कल्याण का अनुभव है;
परन्तु उनमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों में से प्रत्येक का कम से कम एक सदस्य होगा;
केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट एक सदस्य-सचिव जो :-
प्रबंध, संगठनात्मक संरचना या सामाजिक आंदोलन के क्षेत्र में विशेषज्ञ है, या
ऐसा अधिकारी है जो संघ की सिविल सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का सदस्य है अथवा संघ के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है और जिसके पास समुचित अनुभव है।
✍️आयोग के सदस्य सचिवों की सूची
✍️राष्टीय महिला आयोग की सांविधिक निकाय के रूप में स्थापना
महिलाओं के लिए संवैधानिक और विधायी सुरक्षापायों की समीक्षा करने;
उपचारी विधायी उपायों की सिफारिश करने;
शिकायतों के निवारण को सुकर बनाने; और
महिलाओं को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों पर सरकार को सलाह देने
के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम,1990 (भारत सरकार का 1990 का अधिनियम संख्या 20) के तहत जनवरी, 1992 में की गई।
अपने अधिदेश के अनुरूप, आयोग ने रिपोर्टाधीन वर्ष के दौरान महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए अनेक उपाय किए और उनके आर्थिक सशक्तीकरण के लिए कार्य किया। आयोग ने लक्षद्वीप के अलावा सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों का दौरा पूरा कर लिया है और महिलाओं की स्थिति एवं अनके सशक्तीकरण का मूल्यांकन करने के लिए जेंडर विवरणिकाएं तैयार कर ली हैं। इसे बड़ी संख्या में शिकायतें प्राप्त होती हैं और शीघ्र न्याय दिलाने के लिए अनेक मामलों में स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई की है। आयोग ने बाल विवाह के मुद्दे को उठाया है, कानूनी जागरूकता कार्यक्रमों, पारिवारिक महिला लोक अदालतों को प्रायोजित किया है और दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961, प्रसव-पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994, भारतीय दंड संहिता, 1860 और राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 को अधिक सख्त एवं प्रभावी बनाने के लिए उनकी समीक्षा की। आयोग ने कार्यशालाओं/परामर्श बैठकों का आयोजन किया, महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण पर विशेषज्ञ समितियों का गठन किया, जेंडर जागरूकता के लिए कार्यशालाओं/संगोष्ठियों का आयोजन किया और मादा भ्रूण हत्या, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा आदि के विरुद्ध समाज में जागरूकता विकसित करने के उद्देयश्य से इनके विरुद्ध प्रचार अभियान चलाया।
✍️कृत्य:-
धारा 10
राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनिमय, 1990
(भारत सरकार का 1990 का अधिनियम संख्या 20)
आयोग निम्नलिखित सभी या किन्ही कृत्यों का पालन करेगा, अर्थात् :-
महिलाओं के लिए संविधान और अन्य विधियों के अधीन उपबंधित रक्षोपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण और परीक्षा करना ;
उन रक्षोपायों के कार्यकरण के बारे में प्रति वर्ष, और ऐसे अन्य समयों पर जो आयोग ठीक समझे, केन्द्रीय सरकार को रिपोर्ट देना ;
ऐसी रिपोर्ट में महिलाओं की दशा सुधारने के लिए संघ या किसी राज्य द्वारा उन रक्षोपायों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिशें करना ;
संविधान और अन्य विधियों के महिलाओं को प्रभावित करने वाले विद्यमान उपबंधों का समय-समय पर पुनर्विलोकन करना और उनके संशोधनों की सिफारिश करना जिससे कि ऐसे विधानों में किसी कमी, अपर्याप्तता या त्रुटियों को दूर करने के लिए उपचारी विधायी उपायों का सुझाव दिया जा सके ;
संविधान और अन्य विधियों के उपबंधों के महिलाओं से संबंधित अतिक्रमण के मामलों को समुचित प्राधिकारियों के समक्ष उठाना ;
✍️निम्नलिखित से संबंधित विषयों पर शिकायतों की जांच करना और स्वप्रेरणा से संज्ञान लेना :-
महिलाओं के अधिकारों का वंचन ;
महिलाओं को संरक्षण प्रदान करने के लिए और समता तथा विकास का उद्देश्य प्राप्त करने के लिए भी अधिनियिमत विधियों का अक्रियान्वयन ;
महिलाओं की कठिनाइयों को कम करने और उनका कल्याण सुनिश्चित करने तथा उनको अनुतोष उपलब्ध कराने के प्रयोजनार्थ नीतिगत विनिश्चयों, मागर्दशर्क सिद्धांतों या अनुदेशों का अनुपालन और ऐसे विषयों से उद्भूत प्रश्नों को समुचित प्राधिकारियों के समक्ष उठाना ;
महिलाओं के विरुद्ध विभेद और अत्याचारों से उद्भूत विनिर्दिष्ट समस्याओं या स्थितियों का विशेष अध्ययन या अन्वेषण कराना और बाधाओं का पता लगाना जिससे कि उनको दूर करने की कार्य योजनाओं की सिफारिश की जा सके ;
संवर्धन और शिक्षा संबंधी अनुसंधान करना जिससे कि महिलाओं का सभी क्षेत्रों में सम्यक् प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के उपायों का सुझाव दिया जा सके और उनकी उन्नति में अड़चन डालने के लिए उत्तरदायी कारणों का पता लगाना जैसे कि आवास और बुनियादी सेवाओं की प्राप्ति में कमी, उबाऊपन और उपजीविकाजन्य स्वास्थ्य परिसंकटों को कम करने के लिए और महिलाओं की उत्पादकता की वृद्धि के लिए सहायक सेवाओं और प्रौद्योगिकी की अपर्याप्तता ;
महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और उन पर सलाह देना ;
संघ और किसी राज्य के अधीन महिलाओं के विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना ;
किसी जेल, सुधार गृह, महिलाओं की संस्था या अभिरक्षा के अन्य स्थान का, जहां महिलाओं को बंदी के रूप में या अन्यथा रखा जाता है, निरीक्षण करना या करवाना, और उपचारी कार्रवाई के लिए, यदि आवश्यक हो, संबंधित प्राधिकारियों से बातचीत ;
बहुसंख्यक महिलाओं को प्रभावित करने वाले प्रश्नों से संबंधित मुकदमों के लिए धन उपलब्ध कराना ;
महिलाओं से संबंधित किसी बात के, और विशष्टतया उन विभिन्न कठिनाइयों के बारे में जिनके अधीन महिलाएं कार्य करती हैं, सरकार को समय-समय पर रिपोर्ट देना ;
कोई अन्य विषय जिसे केन्द्रीय सरकार उसे निर्दिष्ट करे ।
केन्द्रीय सरकार, उपधारा (1) के खंड (ख) में निर्दिष्ट सभी रिपोर्टों को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी और उसके साथ संघ से संबंधित सिफारिशों पर की गई या की जाने के लिए प्रस्तावित कारर्वाई तथा यदि कोई ऐसी सिफारिशें अस्वीकृत की गई हैं तो अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा ।
जहां कोई ऐसी रिपोर्ट या उसका कोई भाग किसी ऐसे विषय से संबंधित है जिसका किसी राज्य सरकार से संबंध है वहां आयोग ऐसी रिपोर्ट या उसके भाग की एक प्रति उस राज्य सरकार को भेजेगा जो उसे राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखवाएगी और उसके साथ राज्य से संबंधित सिफारिशों पर की गई या की जाने के लिए प्रस्तावित कार्रवाई तथा यदि कोई ऐसी सिफारिशें अस्वीकृत की गई हैं तो अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा ।
आयोग को उपधारा (1) के खंड (क) या खंड (च) के उपखंड (i) में निर्दिष्ट किसी विषय का अन्वेषण करते समय और विशिष्टतया निम्नलिखित विषयों के संबंध में वे सभी शक्तियां होंगी जो वाद का विचारण करने वाले सिवल न्यायालय की हैं, :-
भारत के किसी भी भाग से किसी व्यिक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना ;
किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना ;
शपथपत्र पर साक्ष्य ग्रहण करना ;
किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतिलिपि की अपेक्षा करना ;
साक्ष्यों और दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना ; और
कोई अन्य विषय जो विहित किया जाए ।
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