🤗राजस्थानी भाषा (Rajasthani language)🤗
✍️ राजस्थानी भारोपीय भाषा परिवार के अंतर्गत आती है।
✍️ उत्पत्ति की दृष्टि से राजस्थानी भाषा का उद्भव शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है।
✍️ मरुभाषा का उल्लेख-
⭐कुवलयमाला में वर्णित 18 देशी भाषाओं मरुभाषा को सम्मिलित किया गया, जो पश्चिमी राजस्थान की भाषा थी।
⭐17 वीं शताब्दी के नोबोलीछंद
⭐18 वीं शताब्दी की आठ देसरी गुजरी नामक रचनाओं में
✍️ राजस्थान की भाषा के लिए राजस्थानी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग Linguistic survey of India में 1912 ई. में जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने किया।
✍️ मारवाड़ी शब्द का प्रयोग-
⭐कवि कुशललाभ- पिंगल शिरोमणि
⭐अबुल फजल- आईने अकबरी
✍️ 1961 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार यहां 73 बोलीयां जाती हैं।
✍️ केंद्रीय साहित्य अकादमी ने राजस्थानी भाषा को एक स्वतंत्र भाषा के रूप में मान्यता दे दी है।
✍️ डॉ. एल.पी. टैसीटोरी के अनुसार राजस्थानी भाषा 12वीं शताब्दी के लगभग अस्तित्व में आ चुकी थी।
✍️ 13 वीं शताब्दी तक आते-आते प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी आशापुरा से अलग हो चुकी थी, परंतु राजस्थानी में गुजराती का मिलाजुला रूप सोलवीं सदी तक चलता रहा।
✍️ 17वीं सदी के अंत तक राजस्थानी पूर्ण रूप से एक स्वतंत्र भाषा के रूप में विकसित हो चुकी थी।
✍️ राजस्थानी भाषा विकास को चार चरणों में विभाजित किया जा सकता-
11 वीं - 13 वीं सदी
13 वीं - 16 वीं सदी
16 वीं - 18 वीं सदी
18 वीं सदी - अब तक
✍️ राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति को लेकर विद्वानों की विभिन्न मत-
शौरसेनी अपभ्रंश से- डॉ. एल.पी. टैसीटोरी
नागर अपभ्रंश से- डॉ. जे अब्राहम ग्रियर्सन, डॉ. पुरुषोत्तम मेनारिया
गुर्जरी अपभ्रंश से- डॉ. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी एवं मोतीलाल मेनारिया
सौराष्ट्री अपभ्रंश से- सुनीति कुमार चटर्जी
✍️ राजस्थानी भाषा के दो भेद-
पूर्वी राजस्थानी भाषा- पिंगल (शौरसेनी अपभ्रंश से)
पश्चिमी राजस्थानी भाषा- डिंगल (गुर्जरी अपभ्रंश से)
⭐पिंगल -
बृज भाषा एवं पूर्वी राजस्थानी का साहित्य रूप पिंगल कहलाता है, जो अधिकांशत भाट जाति के कवियों द्वारा लिखा गया।
इसका विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ।
उदा.- रतन रासौ(, पृथ्वीराज रासौ(कवि चंदबरदाई), खुमाण रासौ(दलपत विजय), वंश भास्कर (सूर्यमल मिश्रण) आदि।
⭐डिंगल-
पश्चिमी राजस्थानी या मारवाड़ी का साहित्यिक रूप डिंगल कहलाता है, जो अधिकार चारण कवियों द्वारा लिखा गया।
इसका विकास गुर्जरी अपभ्रंश से हुआ।
डिंगल का सर्वप्रथम प्रयोग वि.स. 1607 - 08 में कुशललाभ ने पिंगल शिरोमणि में किया।
इसमें जिस तरह से शब्द उच्चारित किया जाता है, ठीक उसी तरह से लिखा जाता है।
उदा. - राजरूपक (वीरभाण), वचनिका राठौड़ रतन सिंह महेसदासोत री (जग्गा खिड़िया), अचलदास खींची री वचनिका (शिवदास गाडण), राव जैतसी रो छंद (बीठू सूजाजी), रुक्मणी हरण(सायांजी झूला), नागदमण (सायांजी झूला), ढोला मारु रा दूहा (कवि कल्लोल) , सगत रासौ (गिरधर आसिया) आदि।
🤗राजस्थान की प्रमुख बोलियां🤗
✍️डॉ. एल. पी. टैसीट़री के अनुसार-
डॉ. एलपी टैस्सीटौरी ने राजस्थानी की बोलियों को निम्न दो भागों में बाँटा हैं-
1. पश्चिमी राजस्थानी(मारवाड़ी) – शेखावाटी, जोधपुर की खड़ी राजस्थानी, ढटकी, थली, बीकानेरी, किसनगढ़ी, खैराड़ी, सिरोही की बोलियाँ – गौड़वाड़ी एवं देवड़ावटी
2. पूर्वी राजस्थानी (ढूँढ़ाड़ी) – तोरावाटी, खड़ी जयपुरी, काठौड़ी, अजमेरी, राजावाटी, चौरासी, नागरचौल, हाड़ौती आदि।
1. पश्चिमी राजस्थानी(मारवाड़ी) –
मारवाड़ी-
पश्चिमी राजस्थान के प्रधान बोली।
इसकी उत्पत्ति गुर्जरी अपभ्रंश से हुई है।
इसमें संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और अरबी-फारसी के शब्द मिलते हैं।
कुवलयमाला में इसका उल्लेख मरुभाषा के रूप में है।
जोधपुर, बीकानेर, से पाली, जैसलमेर, नागौर, जालौर एवं सिरोही जिलों में यह भाषा बोली जाती है।
विशुद्ध मारवाड़ी केवल जोधपुर एवं उसके आसपास क्षेत्र में ही बोली जाती है।
मारवाड़ी साहित्य को डिंगल कहा जाता है।
छंदों में सोरठा छंद और रागों में मांड राग मारवाड़ी भाषा जितना अच्छा अन्य प्रांतीय भाषाओं में नहीं मिलता है।
जैन साहित्य एवं मीराँ के अधिकांश पद इसी भाषा में लिखे गए हैं।
राजिये रा सोरठा, वेलि किसन रुक्मणी री, ढोला मारवण, मूमल आदि लोकप्रिय काव्य मारवाड़ी भाषा में ही रचित हैं।
👉मारवाड़ी की बोलियाँ-
मेवाड़ी, बागड़ी, शेखावाटी, बीकानेरी, ढटकी, थली, खैराड़ी, नागौरी, देवड़ावाटी, गौड़वाड़ी आदि।
⭐मेवाड़ी-
यह मारवाड़ी के बाद राजस्थान की महत्वपूर्ण बोली है।
मेवाड़ी बोली के विकसित और शिष्ट रूप के दर्शन हमें 12वीं-13वीं शताब्दी में ही मिलने लगते हैं।
मेवाड़ी का शुद्ध रूप मेवाड़ के गाँवों में ही देखने को मिलता है।
मेवाड़ी में लोक साहित्य का विपुल भण्डार है।
महाराणा कुंभा द्वारा रचित कुछ नाटक इसी भाषा में हैं।
⭐वागड़ी/बागड़ी
अतः यहाँ की भाषा वागड़ी/ बागड़ी कहलायी, जिस पर गुजराती का प्रभाव अधिक है।
यह भाषा मेवाड़ के दक्षिणी भाग, दक्षिणी अरावली प्रदेश तथा मालवा की पहाड़ियों तक के क्षेत्र में बोली जाती है।
यह भीलों में भी प्रचलित है।
भीली बोली इसकी सहायक बोली है।
👉मारवाड़ी की उपबोली
⭐शेखावाटी
शेखावाटी राज्य के शेखावाटी क्षेत्र (सीकर, झुंझुनुँ तथा चुरू जिले के कुछ क्षेत्र) में बोली जाने वाली भाषा है ।
⭐गौड़वाड़ी-
बीसलदेव रासौ इस बोली की मुख्य रचना है।
बालवी, सिरोही, खणी, महाहड़ी इसकी उपबोलियाँ हैं।
⭐देवड़ावाटी/सिरोही-
⭐ढ़ाटी-
2. पूर्वी राजस्थानी (ढूँढ़ाड़ी) –
ढूँढाड़ी/जयपुरी या झाड़शाही-
उत्तरी जयपुर को छोड़कर शेष जयपुर, किशनगढ़, टोंक, लावा तथा अजमेर-मेरवाड़ा के पूर्वी अंचलों में बोली जाने वाली भाषा ढूँढाड़ी कहलाती है।
इस पर गुजराती, मारवाड़ी एवं ब्रजभाषा का प्रभाव समान रूप से मिलता है।
ढूँढाड़ी में गद्य एवं पद्य दोनों में प्रचुर साहित्य रचा गया।
संत दादू एवं उनके शिष्यों ने इसी भाषा में रचनाएँ की।
इस बोली को भी कहते हैं।
इसका बोली के लिए प्राचीनतम उल्लेख 18वीं शताब्दी की ‘आठ देस गूजरी’ पुस्तक में हुआ है।
ढूँढाड़ी की प्रमुख बोलियाँ-
तोरावाटी, राजावाटी, चौरासी (शाहपुरा), नागरचोल, किशनगढ़ी, अजमेरी, काठेड़ी, हाड़ौती।
⭐तोरावाटी
झुंझुनूँ जिले का दक्षिणी भाग, सीकर जिले का पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी भाग तथा जयपुर जिले के कुछ उत्तरी भाग को तोरावाटी कहा जाता है और यहाँ की बोली तोरावाटी कहलाई।
नागरचोल- सवाईमाधोपुर जिले के पश्चिमी भाग एवं टोंक जिले के दक्षिणी एवं पूर्वी भाग में बोली जाती है।
⭐हाड़ौती-
हाड़ा राजपूतों द्वारा शासित होने के कारण कोटा, बूँदी, बारां एवं झालावाड़ का क्षेत्र हाड़ौती कहलाया और यहाँ की बोली हाड़ौती, जो ढूँढाड़ी की ही एक उपबोली है।
हाड़ौती का भाषा के अर्थ में प्रयोग सर्वप्रथम केलॉग की हिन्दी ग्रामर में सन् 1875 ई. में किया गया।
इसके बाद अब्राहम ग्रियर्सन ने अपने ग्रंथ में भी हाड़ौती को बोली के रूप में मान्यता दी।
सूर्यमल्ल मिश्रण की अधिकांश रचनाएँ हाड़ौती भाषा में है।
वर्तमान में हाड़ौती कोटा, बूँदी (इन्द्रगढ़ एवं नैनवा तहसीलों के उत्तरी भाग को छोड़कर), बाराँ (किशनगंज एवं शाहबाद तहसीलों के पूर्वी भाग के अलावा) तथा झालावाड़ के उत्तरी भाग की प्रमुख बोली है।
हाड़ौती के उत्तर में नागरचोल, उत्तर-पूर्व में स्यौपुरी, पूर्व तथा दक्षिण में मालवी बोली जाती है।
वर्तनी की दृष्टि से हाड़ोती राजस्थान की सभी बोलियों में सबसे कठिन समझी जाती है।
⭐मेवाती-
अलवर एवं भरतपुर जिलों का क्षेत्र मेव जाति की बहुलता के कारण मेवात के नाम से जाना जाता हैै और यहाँ की बोली मेवाती कहलाती है।
यह अलवर की किशनगढ़, तिजारा, रामगढ़, गोविन्दगढ़, लक्ष्मणगढ़ तहसीलों तथा भरतपुर की कामां, डीग व नगर तहसीलों के पश्चिमोत्तर भाग तक तथा हरियाणा के गुड़गाँव जिला व उ.प्रदेश के मथुरा जिले तक विस्तृत है।
यह सीमावर्तिनी बोली है।
उद्भव एवं विकास की दृष्टि से मेवाती पश्चिमी हिन्दी एवं राजस्थानी के मध्य सेतु का कार्य करती है।
मेवाती बोली पर ब्रजभाषा का प्रभाव बहुत अधिक दृष्टिगोचर होता है।
लालदासी एवं चरणदासी संत सम्प्रदायों का साहित्य मेवाती भाषा में ही रचा गया है।
चरणदास की शिष्याएँ दयाबाई व सहजोबाई की रचनाएँ इस बोली में है।
स्थान भेद के आधार पर मेवाती बोली के कई रूप देखने को मिलते हैं, जैसे खड़ी मेवाती, राठी मेवाती, कठेर मेवाती, भयाना मेवाती, बीघोता, मेव व ब्राह्मण मेवाती आदि।
⭐अहीरवाटी (राठी)-
‘आहीर’ जाति के क्षेत्र की बोली होने के कारण इसे हीरवाटी या हीरवाल भी कहा जाता है।
इस बोली के क्षेत्र को राठ कहा जाता है, इसलिए इसे राठी कहते हैं।
यह मुख्यतः अलवर की बहरोड़ व मुंडावर तहसील, जयपुर की कोटपूतली तहसील के उत्तरी भाग, हरियाणा के गुड़गाँव , महेन्द्रगढ़, नारनौल, रोहतक जिलों एवं दिल्ली के दक्षिणी भाग में बोली जाती है।
यह बाँगरु (हरियाणवी) एवं मेवाती के बीच की बोली है।
जोधराज का हम्मीर रासौ महाकाव्य, शंकर राव का भीम विलास काव्य, अलीबख्शी ख्याल लोकनाट्य आदि की रचना इसी बोली में की गई है।
⭐नीमाड़ी-
दक्षिणी राजस्थान की प्रमुख बोली।
इसे मालवी की उपबोली माना जाता है।
नीमाड़ी को "दक्षिणी राजस्थानी" भी कहा जाता है।
इसमें पर गुजराती, भीली एवं खानदेशी का प्रभाव है।
⭐खैराड़ी-
शाहपुरा (भीलवाड़ा) बूँदी आदि के कुछ इलाकों में बोली जाने वाली बोली, जो मेवाड़ी, ढूँढाड़ी एवं हाड़ौती का मिश्रण है।
⭐रांगड़ी-
मालवा के राजपूतों में मालवी एवं मारवाड़ी के मिश्र एवंण से बनी रांगड़ी बोली भी प्रचलित है।
✍️ डॉ॰ अब्राहम ग्रियर्सन ने राजस्थानी की पाँच बोलियाँ मानी हैं-
(1) पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी)
(2) उत्तर पूर्वी राजस्थानी (मेवाती अहीरवाटी)
(3) मध्य-पूर्वी राजस्थानी (ढूँढाडी व हाड़ौती)
(4) दक्षिण-पूर्वी राजस्थानी (मालवी, रांगड़ी, बागड़ी-साथवाड़ी)
(5) दक्षिणी राजस्थानी (निमाड़ी व भीली)
(1) पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी)-
बोलने वालों की संख्या और क्षेत्रफल की दृष्टि से पश्चिमी राजस्थानी मारवाड़ी राजस्थान की सबसे महत्त्वपूर्ण बोली है।
यह मुख्यतः मारवाड़, मेवाड़, पूर्वी सिंध, जैसलमेर, बीकानेर, पंजाब और जयपुर स्टेट के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्रों में बोली जाती है।
मारवाड़ी राजस्थान में सबसे अधिक क्षेत्र में बोली जाती है।
इसे निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
(i) पूर्वी मारवाड़ी-
इसके अंतर्गत मारवाड़ी, ढाढ़की एवं गिरासियों की बोली का समावेश किया जाता है।
'राजिया के सोरठे' इसी बोली में लिखे गये हैं।
(ii) उत्तरी मारवाड़ी- इसके अंतर्गत बीकानेर, बागड़ी, शेखावाटी बोलियों का समावेश किया जाता है।
'वेलि क्रिसन रुक्मिणी री' की रचना उत्तरी मारवाड़ी में की गई है।
(iii) पश्चिमी मारवाड़ी- इसके अंतर्गत थली और थटकी आदि बोलियों का समावेश किया जाता है।
(iv) दक्षिणी मारवाड़ी- इसके अंतर्गत खेराड़ी, गौड़वाड़ी, सिरोही, गुजराती, देवड़ावाड़ी आदि बोलियों का समावेश किया जाता है।
2. उत्तर-पूर्वी राजस्थानी-
यह बोली हिन्दी के समान प्रतीत होती है।
इसके अंतर्गत मेवाती और अहीर प्रदेश की सम्मिलित किया जाता है।
(i) मेवाती- इसके अंतर्गत कठेर मेवाती, भयाना मेवाती, आरेज मेवाती, नहेड़ा मेवाती, बीछेता मेवाती और खड़ी मेवाती बोलियों को सम्मिलित किया जाता है।
कठेर मेवाती मुख्यतः भरतपुर के उत्तर-पश्चिम और अलवर के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्रों में बोली जाती है।
बीछोता मेवाती : बीछोता बोली अलवर के उत्तर-पश्चिम में जयपुर राज्य में स्थित कोटकासम एवं नामा राज्य की बावल तहसील में बोली जाती है।
खड़ी मेवाती : खड़ी मेवाती मेवात की केन्द्रीय बोली है जो कि किशनगढ़, रामगढ़, तिजारा, गोविन्दगढ़, और लक्ष्मणगढ़ में मुख्यतः बोली जाती है।
(ii) अहीरवाटी- यह अलवर, भरतपुर तथा दिल्ली के दक्षिण में रोहतक , गुड़गांव जिलों के भागों में बोली जाती है।
3. मध्य-पूर्वी राजस्थानी- मध्य-पूर्वी राजस्थानी में मुख्यतः ढूंढाड़ी और हाड़ौती बोलियों को सम्मिलित किया जाता है।
(i) ढूंढाड़ी- इसके अंतर्गत तोरावाटी, खड़ी जैपूरी, राजावाटी, अजमेरी, किशनगढ़ी आदि बोलियां सम्मिलित की जाती है। जयपुरी बोली को इसका आदर्श रूप माना जाता है।
(ii) हाड़ौती- इसमें गुर्जरवाड़ी, बागड़ी आदि बोलियां सम्मिलित की जाती है।
बूंदी के प्रसिद्ध कवि सूर्यमल्ल मिश्रण की रचनाओं में इस बोली का प्रयोग हुआ है।
4. दक्षिण-पूर्वी राजस्थानी- दक्षिण-पूर्वी राजस्थानी के कई भेद हैं।
यह समस्त मालवा प्रान्त, मेवाड़, मध्यप्रान्त आदि क्षेत्रों में बोली जाती है।
इसके भेद निम्नलिखित हैं-
(i) मालवी, (ii) रांगड़ी, (iii) बागड़ी - साथवाड़ी।
5. दक्षिणी राजस्थानी- इसमें नीमाड़ी एवं भीली को शामिल किया है।
इस पर गुजराती एवं खानदेशी का प्रभाव है।
दक्षिणी राजस्थानी की मुख्य बोली नीमाड़ी है।
उद्गम की दृष्टि से यह मालवी का ही एक रूप है।
इस बोली पर पड़ौसी भीली और खानदेशी बोलियों का प्रभाव है।
भीली को ग्रियर्सन ने राजस्थानी से पृथक माना है।
जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने अपने Linguistic Survey of India में राजस्थानी का स्वतंत्र भाषा के रूप में वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया।
[नोट:- Modern Vernacluar Literature of Northern India - जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन की पुस्तक।]
🤗 महत्वपूर्ण प्रश्न 🤗
✍️राजस्थानी भाषा (Rajasthani Language)
🧠राजस्थान की भाषा के लिए राजस्थानी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया था? [कृषि पर्यवेक्षक-03.03.2019]
(1) कवि कुशल लाभ
(2) सूर्यमल्ल मिश्रण
(3) जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन
(4) जेम्स टॉड
Ans. (3)
[व्याख्या- राजस्थानी बोलियों का प्रथम वर्णनात्मक दिग्दर्शन 1912 में सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन नामक विद्वान अपने ग्रंथ लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया' [Linguis-Survey of India] (11 खण्ड और 20 भाग) में किया। अपने इस ग्रन्थ के नौंवे खण्ड के दूसरे भाग में राजस्थानी का स्वतंत्र भाषा के रूप में वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया। ग्रियर्सन ने Modern Vernacular terature of Northern India नामक ग्रंथ भी लिखा।]
🧠'लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया' के लेखक हैं-
[JEN Diploma (TSP) Exam - 16.10.2016]
(1) जॉर्ज ग्रियर्सन
(2) एल.पी. टेस्सीटोरी
(3) मोतीलाल मेनारिया
(4) गैरी स्मिथ
Ans. (1)
🧠'राजस्थानी' का स्वतंत्र भाषा के रूप में वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करने वाले प्रथम विद्वान कौन थे-
[RAS - 1993], [Patwar - 201D[E.O., 2007] [प्रवक्ता (तकनीकी शिक्षा विभाग) -12.03.2021]
(1) जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन
(2) टेलर होमस
(3) जॉर्ज गिब्सन
(4) जॉर्ज सी.एल. शार्वस
Ans. (1)
🧠राजस्थानी भाषा का उत्पत्ति काल है-
[RAS 1996]
(1) ग्यारहवीं शताब्दी
(2) तेरहवीं शताब्दी का प्रारंभिक काल
(3) बारहवीं शताबी का अंतिम चरण
(4) चौदहवीं शताब्दी
Ans. (3)
[व्याख्या - राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति शौरसैनी प्राकृत के गुर्जरी अपभ्रंश से हुई, इसके समर्थक मोती लाल मेनारिया, डॉ. कन्हैयालाल माणिक्य लाल मुंशी है। जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने इसकी उत्पत्ति 'नागर अपभ्रंश' से मानी। प्रामाणिक तथ्यों के आधार पर यह माना जाता है कि राजस्थानी भाषा 12वीं शताब्दी में अस्तित्व में आ चुकी थी।]
🧠किस भाषा से राजस्थान का उद्भव हुआ है?
[कॉलेज व्याख्याता (सारंगी) परीक्षा 30.05.2019]
(1) शौरसेनी अपभ्रंश
(2) मराठी
(3) भोजपुरी
(4) बंगाली
Ans. (1)
🧠निम्न में से कौन विद्वान है, जो राजस्थानी भाषा बोलियों से सम्बन्धित कार्य के लिए नहीं जाने जाते?
[Asstt. Agriculture Officer Exam-31.05.2019) (1) नोम चोम्स्की
(2) जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन
(3) डॉ. मोतीलाल मेनारिया
(4) डॉ. हीरालाल माहेश्वरी
Ans. (1)
🧠 डॉ. टेसीतोरी के अनुसार राजस्थानी भाषा किस सदी के लगभग अस्तित्व में आ चुकी थी-
[JEN (यांत्रिकी/विद्युत) डिप्लोमा -26.12.2020] (1)12वीं सदी
(2)11वीं सदी
(3) 13वीं सदी
(4)10वीं सदी
Ans. (1)
🧠राजस्थानी भाषा का स्वर्णयुग किस काल को कहा जाता है?
महिला पर्यवेक्षक परीक्षा (TSP) - 20.12.20151
(1) 1850 ई. - 1925 ई.
(2) 1650 ई. - 1850 ई.
(3) 1250 ई. -1450 ई.
(4) 1450 ई-1610 ई
Ans.(2)
[व्याख्या-16वीं सदी के बाद राजस्थानी का विकास एक स्वतंत्र भाषा के रूप में होने लगा तथा 17वीं सदी के अंत तक आते-आते राजस्थानी पूर्णतः एक स्वतंत्र भाषा का रूप ले चुकी थी।]
🧠राजस्थान की मानक बोली है?
(वनरक्षक परीक्षा - 2013]
(1) मारवाड़ी
(2) बागड़ी
(3) मेवाती
(4) मेवाड़ी
Ans. (1)
[व्याख्या- बोलने वालों व क्षेत्रफल की दृष्टि से मारवाड़ी भाषा का प्रथम स्थान है। 17 वीं शताब्दी में अबुल फजल द्वारा रचित आईने अकबरी में भारत की प्रमुख भाषाओं में मारवाड़ी भाषा का भी उल्लेख किया गया है।]
🧠मारवाड़ी भाषा का विशुद्ध रूप कहाँ दृष्टिगत होता है?
[II Grade (Urdu) Exam. 2011]
(1) उदयपुर एवं सीमावर्ती क्षेत्रों में
(2) बीकानेर और उसके समीपवर्ती क्षेत्रों में
(3) जोधपुर और उसके समीपवर्ती क्षेत्रों में
(4) सिरोही और उसके समीपवर्ती क्षेत्रों में
Ans. (3)
[ व्याख्या - मारवाड़ी - यह बोली जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर, नागौर, सिरोही तथा शेखावाटी क्षेत्र में प्रचलित है। इस भाषा की प्रमुख उप-बोलियाँ बीकानेरी, थाली, नागौरी, शेखावाटी व गौड़वाड़ी है।]
🧠सोरठा, छंद और माँड राग जिस बोली की शिल्पगत विशेषताएँ हैं, वह है-
[पटवार परीक्षा - 2011]
(1) मारवाड़ी
(2) मेवाती
(3) बागड़ी
(4) ढूंढाड़ी
Ans. (1)
[व्याख्या - मारवाड़ी भाषा राजस्थान की मानक भाषा मानी जाती है। जिसकी प्रमुख विशेषताएँ है -भक्ति, नीति, शृंगार और वीर रस से युक्त अनुपम साहित्य भंडार। ओजपूर्ण विशिष्ट भाषा। छंदों में सोरण छंद और रागों में मांड राग का श्रेष्ठतम प्रयोग।]
🧠'राजस्थानी भाषा का साहित्यिक रूप' कौनसी बोली है?
[वनरक्षक परीक्षा - 2013]
(1) पिंगल (2) पंजाबी (3) राजस्थानी (4) डिंगल
Ans- 4
[व्याख्या - डिंगल मारवाड़ी बोली की ही एक साहित्यिक शैली है। डिंगल वस्तुतः अपभ्रंश शैली का ही उन्नत रूप है। यह राजस्थानी या मरुभाषा की एक विशिष्ट साहित्यिक भंगिमा शैली है। पिंगल का वास्तविक अर्थ छन्द शास्त्र है। पिंगल एक मिश्रित भाषा है, जो डिंगल से अलग है।]
🧠पृथ्वीराज राठौड़ द्वारा रचित पुस्तक 'वेलि कृष्ण रुखमणी री' किस भाषा में लिखी गई है?
[II Grade GK (संस्कृत शिक्षा) -19.02.2019]
(1) पिंगल
(2) डिंगल
(3) मारवाड़ी
(4) संस्कृत
Ans- (2)
[व्याख्या- वेलि डिंगल साहित्य के छंद, वेलियों गीत में लिखा हुआ 305 पद्यों का खण्ड-काव्य है। इसमें श्री कृष्ण-रुक्मिणी विवाह की कथा सविस्तार वर्णित की गई है। दुरसा आढ़ा ने इसे 'पाँचवाँ वेद कहा है।]
🧠कवि सूर्यमल्ल मिश्रण ने अपनी पुस्तक वीर सतसई किस भाषा में लिखी है?
[कनिष्ठ अनुदेशक (इलेक्ट्रीशियन) परीक्षा- 24.03.201934
(1) डिंगल (2) प्राकृत (3) संस्कृत (4) पिंगल
Ans. (1)
[व्याख्या सूर्यमल्ल का दूसरा ग्रंथ 'वीर सतसई' वीर रसात्मक दोहों से परिपूर्ण डिंगल की अनुपम कृति है। इन दोहों में राजस्थान के मध्ययुगीन जीवनादों तथा शौर्य, त्याग, बलिदान, धरती प्रेम आदि जीवन मूल्यों को सफलरूप में अभिव्यक्त किया गया है।]
🧠 किसने राजरूपक की भूमिका में डिंगल को राजस्थान भाषा कहा है?
[पटवारी परीक्षा 2017]
(1) डॉ. सुमित कुमार चटर्जी ने
(2) उदयराज उज्ज्वल
(3) पं. रामकरण आसोपा ने
(4) नरोत्तम स्वामी ने
Ans.(3)
🧠 ‘मुडिया' लिपि के अक्षरों के आविष्कारकर्ता किसे ' माना जाता है-
(प्रवक्ता (तकनीकी शिक्षा विभाग)-12.03.2021]
(1) टोडरमल
(2) टैसीटोरी
(3) बाँकीदास
(4) गजसिंह
Ans. (1)
[व्याख्या -महाजनी लिपि अथवा वाणियावाटी लिपि में बिना मात्रा वाले महाजनी शब्द मोड़ कर लिखे जाते हैं। जिन्हें मुड़िया अक्षर कहते है। ऐसा माना जाता हैं कि इन मुड़िया अक्षरों के आविष्कर्ता मुगल सम्राट अकबर के अर्थ सचिव राजा टोडरमल थे।]
🧠 दादू का साहित्य किस भाषा में संगृहीत है?
[II Grade GK (संस्कृत शिक्षा) -19.02.2019] [जेल प्रहरी परीक्षा 27-10-2018, Shin -III]
(1) मारवाड़ी
(2) बागड़ी
(3) मेवाती
(4) ढूँढाड़ी
✍️ राजस्थानी बोलियाँ (Rajasthani Dialects)
🧠राठी व महेठा किस बोली की उपबोलियाँ है?
[जेल प्रहरी परीक्षा-2017]
(1) मेवाड़ी
(2) ढूंढाड़ी
(3) मेवाती
(4) मारवाड़ी
Ans. (3)
[व्याख्या- मेवाती बोली अलवर, भरतपुर, धौलपुर तथा करौली जिलों में प्रचलित है। चरणदास व उनकी दो शिष्याएं एक दयाबाई व सहजोबाई द्वारा लिखित साहित्य इसी बोली में है। इसकी प्रमुख उप-बोलियाँ राठी, कठेर व महेठा है।]
🧠 मेवाती बोली से संबंधित जिला है?
वनरक्षक - 2013]
(1) जयपुर (2) अलवर (3) सीकर (4) कोटा
Ans. (2)
🧠 प्रतापगढ़, अजबगढ़, थानागाजी और बलदेवगढ़ में बोली जाने वाली बोली है-
[पटवारी परीक्षा 2011]
(1) नहेड़ा मेवाती
(2) कठेर मेवाती
(3) भयाना मेवाती
(4) आरेज मेवाती
Ans. (2)
[व्याख्या- कठेर मेवाती भरतपुर के उत्तर-पश्चिम तथा अलवर के दक्षिण-पूर्व में बोली जाती है। यह अपनी पूर्वी सीमा पर बोली जाने वाली कठेर ब्रजभाषा से प्रभावित है और दक्षिणी सीमा पर काठेड़ा जयपुरी से प्रभावित है।]
🧠निम्नलिखित संतों में से किसने अपने लेखन में मेवाती बोली का प्रयोग नहीं किया?
[AEN Exam - 16.12.2018)
(1) लालदास
(2) चरणदास
(3) सुन्दरदास
(4) सहजोबाई
Ans. (3)
[व्याख्या लालदासी एवं चरणदासी (शिष्याएँ- दयाबाई एवं सहजो बाई) संत सम्प्रदायों का साहित्य मेवाती भाषा में रचा गया है।]
🧠 दक्षिणी पूर्वी राजस्थान की बोली है
पटवार परीक्षा - 2011]
(1) रांगड़ी
(2) मालवी
(3) सोड़वाड़ी
(4) समस्त
Ans. (2)
[व्याख्या - कोटा, झालावाड़, चित्तौड़गढ़ आदि जिलों में बोली जाने वाली मालवी भाषा की उप-बोलियाँ रतलामी, सौंधवाड़ी व निमाड़ी है। मालवी एक कर्णप्रिय कोमल भाषा है, जिस पर कहीं-कहीं मराठी का भी प्रभाव झलकता है। इस बोली की कुछ विशेषताएँ मारवाड़ी व ढूंढाड़ी बोली में पायी जाती है।
इसकी सबसे बड़ी विशेषता सम्पूर्ण क्षेत्र में इसकी एकरूपता है अर्थात् मालवी में सर्वत्र एक सदृशता पाई जाती है। निमाड़ी को दक्षिणी राजस्थानी भी कहा जाता है।]
🧠 निम्नांकित में से कौन-सा युग्म सुमेलित नहीं है?
[Agriculture Officer : 29.01.2013]
(1) मेवाड़ी - चित्तौड़ और भीलवाड़ा
(2) मालवी - बाँसवाड़ा
(3) ढूंढाड़ी - जयपुर
(4) मेवाती - अलवर
Ans.(2)
🧠निमाड़ी एवं रागड़ी' किस बोली की विशेषता है?
[ग्राम सेवक 18.12.16]
(1) हाड़ौती
(3) मेवाती
(2) मालवी
(4) अहीरवाटी
Ans. (2)
🧠राजस्थान की किस बोली पर मराठी भाषा का प्रभाव है?
[LDC Exam -12.08.2018]
(1) मारवाड़ी
(2) मालवी
(3) मेवाड़ी
(4) ढूँढाडी
Ans. (2)
🧠 निम्नलिखित में से किस बोली पर मालवी का शक्तिशाली प्रभाव है-
[LDC Exam - 16.09.2018]
(1) ढूँढाड़ी
(2) अहीरवाटी
(3) वागड़ी
(4) मेवाती
Ans. (1)
🧠 सोंडवाड़ी, पाटवी, रतलामी, उमठवादी आदि मुख्य उपबोलियाँ हैं-
(पटवारी परीक्षा 2011]
(1) ढूंढाड़ी की
(2) मालवी की
(3) हाड़ौती की
(4) बागड़ी की
Ans. (2)
🧠 उदयपुर, भीलवाड़ा व चित्तौड़गढ़ में अधिकांशतः बोली जाती है-
[पटवार परीक्षा - 2011]
(1) मेवाड़ी
(2) रांगड़ी
(3) बागड़ी
(4) मारवाड़ी
Ans. (1)
[व्याख्या - मेवाड़ी बोली उदयपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा तथा डूंगरपुर जिलों में बोली जाती है। महाराणा कुम्भा द्वारा रचित नाटकों में इस बोली का प्रयोग किया गया है। मारवाड़ी व मेवाड़ी में मुख्य अंतर क्रिया के व्यवहार का है।]
🧠मेवाड़ी भाषा में योगसूत्र, भगवद्गीता एवं सांख्यिकारिका ग्रंथों की रचना किसने की?
[खाद्य सुरक्षा अधिकारी-25.11.2019]
(1) चतुरसिंह
(2) पृथ्वीराज राठौड़
(3) दुरसा आढ़ा
(4) शिवदास
Ans. (1)
[व्याख्या - राजपूत सन्त कवि महाराज चतुर सिंहजी (बावजी चतुर सिंहजी) का जन्म 09 फरवरी, 1880 को कर्जली (उदयपुर) में हुआ था। इनके पिता का नाम महाराज सूरत सिंह तथा माता का नाम रानी कृष्ण कवर था। चतुर सिंह जी बावजी ने लगभग 21 छोटे बड़े ग्रंथों की रचना की, जिनमें से मेवाड़ी बोली में लिखी गई गीता पर गंगा-जलि एवं चंद्र शेखर स्त्रोत विश्व प्रसिद्ध हैं। इनके ग्रंथ अलख पचीसी, तू ही अष्टक, अनुभव प्रकाश, चतुर प्रकाश, हनुमत्पंचक, अंबिका अष्टक, शेष चरित्र, चतुर चिंतामणि-दोहावाली पदावली, समान बत्तीसी, शिव महिम्न स्त्रोत, चंद्रशेखर स्त्रोत, श्रीगीता जी, मानव मित्र राम चरित्र, परमार्थे विचार (7 भाग), 15 हृदय रहस्य, बालकारी वार, बालकारी पोथी, लेख संग्रह, सांख्यकारिका, तत्त्व समास, योग सूत्र है।]
🧠 एकलिंगमहात्म्य किस भाषा में लिखा गया है?
[कृषि पर्यवेक्षक परीक्षा - 03.03.2019]
(1) ब्रिज
(2) संस्कृत
(3) राजस्थानी
(4) मेवाड़ी
Ans. (4)
[व्याख्या - कान्हा व्यास द्वारा लिखित इस ग्रंथ से मेवाड़ शासकों की वंशावलियों का ज्ञान होता है।]
🧠 राजस्थान की बोली एवं क्षेत्र के सम्बन्ध को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित में से गलत युग्म को पहचानिए-
[RAS-14 June, 2012] [AEN : 16.05.2014]
(1) टोंक-ढूंढाड़ी
(2) पाली-बागड़ी
(3) बाराँ-हाड़ौती
(4) करौली-मेवाती
Ans. (2)
[बागड़ी बोली - डूंगरपुर तथा बाँसवाड़ा जिलों का प्राचीन नाम वागड़ था, अतः वहाँ बोली जाने वाली बोली वागड़ी/बागड़ी कहलाई। यह बोली राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी भाग में मेवाड़ के दक्षिण भाग, दक्षिणी अरावली प्रदेश तथा मालवा की पहाड़ियों तक के क्षेत्र में बोली जाती है। यह भीलों में अधिक प्रचलित है अतः डॉ. ग्रियर्सन ने इसे 'भीली' (भीलों की बोली) भी कहा है। इस बोली पर गुजराती भाषा का विशेष प्रभाव है।]
बागड़ी बोली राजस्थान के....भाग में बोली जाती है-
[कनिष्ठ अनुदेशक (वेल्डर) भर्ती परीक्षा- 26.03.2019]
(1) उत्तर-पूर्वी दक्षिण-पश्चिमी
(2) दक्षिण-पूर्वी
(3) दक्षिण- पश्चिमी
(4) पश्चिम
Ans. (3)
🧠 डूंगरपुर-बाँसवाड़ा क्षेत्र में कौन-सी भाषा बोली जाती है?
[कनिष्ठ वैज्ञानिक सहायक (प्रलेख) 22.9.2019] [पशुधन सहायक- 21.10.2018][Agriculture Officer : 29.1.2013]
(1) मारवाड़ी
(2) मेवाती
(3) बागड़ी
(4) ढूंढाड़ी
Ans. (3)
🧠 बागड़ी ' बोली प्रचलित है? [S.I. Exam, 1996]
'(1) डूंगरपुर - बाँसवाड़ा
(2) कोटा - बूंदी
(3) सीकर - झुन्झुनूं
(4) अलवर - भरतपुर
Ans. (1)
🧠 ग्रियर्सन ने बागड़ (डूंगरपुर-बाँसवाड़ा) में बोली बोली को कहा है-
[ आरपीएससी कनिष्ठ लेखाकार परीक्षा 2 अगस्त,2015][कॉलेज व्याख्याता (सारंगी) परीक्षा 30.05.2019] [योगा एवं प्राकृतिक चिकित्सा अधिकारी-10.0.2021]
(1) गुजराती
(2) मेवाड़ी
(3) मालवी
(4) भीली
Ans. (4)
🧠 राजस्थानी बोलियों में से किस पर गुजराती का मजबूत प्रभाव है-
[JEN (यांत्रिकी) डिप्लोमा -13.12.2020] [कनिष्ठ वैज्ञानिक सहायक (सीरम) 15.9.2019]]
(1) ढूंढाड़ी
(2) हाड़ौती
(3) मेवाती
(4) वागड़ी
Ans. (4)
🧠 गौड़वाड़ी बोली का क्षेत्र है-
[II Gr. (English). 2011]
(1) चूरू
(2) बून्दी
(3) सिरोही
(4) अलवर
Ans. (3)
[व्याख्या - जालौर जिले की आहोर तहसील के पूर्वी भाग से प्रारम्भ होकर बाली (पाली) में बोली जाने वाली गौड़वाड़ी बोली मारवाड़ी की उपबोली है। बीसलदेव रासो इस बोली की मुख्य रचना है।]
🧠 'तोरावाटी' है-
[Asst. Agriculture Officer : 29.01.2013]
(1) ढूँढाड़ी बोली
(2) मेवाड़ी बोली
(3) मारवाड़ी बोली
(4) हाड़ौती बोली
Ans. (1)
[व्याख्या -ढूंढाड़ी (झाड़साही) बोली जयपुर, अजमेर, टोंक आदि जिलों में बोली जाती है। दादूपंथ का अधिकांश साहित्य इसी बोली में लिखा गया है। इस की मुख्य पहचान सहायक क्रिया के रूप में 'छ' का अधिक प्रयोग होना है। इसे जयपुरी, झाड़शाही और काँई-कुॅंई बोली भी कहते हैं। तोरावााटी, काठेड़ी, चौरासी (शाहपुरा), नागरचोल, राजावाटी, किशनगढ़ी, जगरौती, अजमेरी, सिपाडी, हाड़ौती आदि इसी की प्रमुख उप-बोलियाँ है। “काँई" जयपुरी का अपना विशिष्ट सर्वनाम है। ]
Ans. (4)
🧠कौनसी ढूंढाड़ी की उपबोली नहीं है?
[PSI-07.10.2018]
(1) तोरावाटी
(2) राजावटी
(3) नागर चोल
(4) राठी
Ans. (4)
🧠 कौनसी ढूंढाड़ी की उपबोली नहीं है?
[कनिष्ठ वैज्ञानिक सहायक (रसायन) 14.9.2019] [JEN (यांत्रिकी) डिप्लोमा -13.12.2020]
(1) तोरावटी
(2) राजावटी
(3) नागर चोल
(4) अहीरवाटी
Ans. (4)
🧠 ढूँढाड़ी बोली के प्रचलित विविध रूपों में निम्न में से कौनसा सही नहीं है?
[Asstt. Agriculture Officer Exam-31.05.2019]
(1) तोरावाटी
(2) नागरचोल
(3) चौरासी
(4) खेराड़ी
Ans.(4)
🧠 तोरावाटी बोली प्रचलित है-
[Veterinary Officer - 02.08.2020]
(1) कुचामन में
(2) नीम का थाना में में
(3) बहरोड़ में
(4) झुन्झुनूं में
Ans.(2)
[व्याख्या - झुंझुनूं जिले का दक्षिणी भाग, सीकर जिले का पूर्वी (नीम का थाना) एवं दक्षिणी-पूर्वी भाग तथा जयपुर जिले के कुछ उत्तरी भाग को तोरावाटी कहा जाता है। अतः यहाँ की बोली तोरावाटी कहलाई।]
🧠 जगरौती किस क्षेत्र की बोली है?
[जेल प्रहरी -2017] )
(1) चित्तौड़गढ़
(2)करौली
(3) सिरोही
(4) डूंगरपुर
Ans.(2)
[व्याख्या -जगरौती करौली की प्रमुख बोली है।]
🧠 रांगड़ी बोली मिश्रण है-
[राज, पुलिस कॉन्स्टेबल -2014] [PTI Exam-23.02.2015] -
(1) ढूंढाडी-मारवाड़ी
(2) मारवाड़ी-मालवी
(3) मारवाड़ी-ब्रज
(4) मारवाड़ी-हाड़ौती
Ans.(2)
[व्याख्या- राजपूतों में अत्यधिक प्रचलित रांगड़ी बोली मारवाड़ी और मालवी के सम्मिश्रण से उत्पन्न हुई है।]
🧠 मालव प्रदेश के राजपूतों मे प्रचलित मारवाड़ी और मालवी के सम्मिश्रण से उत्पन्न बोली का क्या नाम है?
[Asstt. Agriculture Officer Exam-31.05.2019] [Librarian Garde-II Exam - 02.08.2020]
(1) रांगड़ी
(2) मालडी
(3) मेवाड़ी
(4) मालवी
Ans. (1)
🧠 'ढटकी', 'थाली' एवं 'खैराड़ी' उपबोलियाँ राजस्थान की किस बोली से सम्बन्धित है-
[कृषि अधिकारी (कृषि विभाग)-19.1.2021]
(1) मेवाड़ी
(2) मारवाड़ी
(3) ढूंढाड़ी
(4) मेवाती
Ans. (2)
🧠 'हाड़ौती' बोली राजस्थान के जिस क्षेत्र में प्रायः नहीं बोली जाती वह क्षेत्र है?
[R.A.S. Pre, 1993]
(1) भरतपुर
(2) झालावाड़
(3) कोटा
(4) बूंदी
Ans. (1)
[व्याख्या - कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़ आदि जिलों में बोली जाने वाली इस बोली में भूतकाल के लिए 'छी, छो' आदि का अधिक प्रयोग किया जाता है। बूंदी के प्रसिद्ध कवि सूर्यमल्ल मिश्रण के काव्य में हाड़ौती का प्रयोग देखा जा सकता है।]
🧠 अलवर जिले के बहरोड़ और मुण्डावर में कौनसी बोली बोली जाती है-
[क. वै. सहायक (विष) 14.9.2019]
(1) रांगडी
(2) हाड़ौती
(3) मेवाड़ी
(4) अहीरवाटी
Ans. (4)
🧠 'अहीरवाटी' बोली राजस्थान के किस क्षेत्र में बोली जाती हैं?
महिला पर्यवेक्षक (TSP) -20.12.20151
(1) बहरोड़, मण्डावर, कोटपूतली
(2) लावा, टोंक, किशनगढ़
(3) कोटा, प्रतापगढ़ झालावाड़
(4) दौसा, चौमू, सांभर
Ans (1)
[व्याख्या- अहीरवाटी बोली बहरोड़, मण्डावर (अलवर), कोटपूतली (जयपुर) में बोली जाती है। जोधराज ने हम्मीर रासो की रचना इसी भाषा में की है। 'आभीर' जाति के क्षेत्र की बोली होने के कारण इसे हीरवाटी या हीरवाल भी कहा जाता है। इस बोली के क्षेत्र को राठ कहा जाता है। इसलिए इसे राठी भी कहते हैं।]
🧠 अहीरवाटी और मेवाती बोलियाँ निम्न में से किस वर्गीकरण में आती हैं-
[कनिष्ठ अनुदेशक (कोपा) भर्ती परीक्षा- 20.03.2019]
(1) पश्चिमी राजस्थानी
(2) उत्तर-पूर्वी राजस्थानी
(3) मध्य-पूर्वी राजस्थानी
(4) दक्षिणी राजस्थानी
Ans. (2)
[व्याख्या - अहीरवाटी एवं मेवाती बोलियाँ उत्तर-पूर्वी राजस्थान विशेषकर अलवर में बोली जाती है।]
🧠 खेराड़ी किस क्षेत्र की बोली है?
[जेल प्रहरी परीक्षा-2017]
(1) चूरू, हनुमानगढ़ (
(2) बून्दी, शाहपुरा
(3) बीकानेर
(4) कोटा, झालावाड़
Ans. (2)
[व्याख्या - खैराड़ी बोली बूंदी, शाहपुरा (भीलवाड़ा) में बोली जाती है। यह मेवाड़ी, ढूंढाड़ी एवं हाड़ौती का मिश्रण है।]
🧠 'खेराड़ी' बोली जिस क्षेत्र में प्रचलित है-
[Asst. Agriculture Officer : 29.01.2013]
(1) भरतपुर-धौलपुर
(2) टोंक-भीलवाड़ा
(3) उदयपुर-चित्तौड़
(4) डूंगरपुर-बाँसवाड़ा
Ans. (2)
🧠 बोली व जिला सुमेलित कीजिए-
[कॉलेज व्याख्याता परीक्षा-24.09.2016]
(A) जगरौती
(B) ढाटी
(C) नागरचोल
(D) धावड़ी
(1) उदयपुर
(2) टोंक
(3) बाड़मेर
(4) करौली
कूट A B C D
(1) 4 3 2 1
(2) 4 1 2 3
(3) 3 1 4 2
(4) 1 2 3 4
Ans. (1)
🧠 निम्नलिखित में से कौनसी मारवाड़ी की उपबोली नहीं है-
[Ras pre-2012]
(1) बीकानेरी
(2) नागरचोल
(3) जोधपुरी
(4) थली
Ans.(2)
[व्याख्या - नागरचोल ढूँढाडी बोली की उपबोली है।]
🧠 राजस्थानी भाषा की प्रथम फिल्म थी?
[जेल प्रहरी परीक्षा - 2017
(1) गोगाजी पीर
(2) बाबा रामदेव
(3) बाबोसा री लाडली
(4) नजराना
Ans. (4)
[व्याख्या -राजस्थान की पहली फिल्म नजराना/नजराणो (1942 में रिलीज) थी, जिसके निर्माता, निर्देशक व संगीतकार जी पी कपूर थे।
प्रथम राजस्थानी नायक -महीपाल (नजराना)
प्रथम राजस्थानी नायिका- सुनयना (नजराना) थी।
प्रथम राजस्थानी लोकप्रिय फिल्म-बाबासा री लाडली (1961)
प्रथम राजस्थानी बाल फिल्म - डूंगर रो भेद (1985)
प्रथम राजस्थानी रंगीन फिल्म-लाज राखो राणी सती (1973)
प्रथम राजस्थानी रजत जयंती फिल्म-म्हारी प्यारी चनणा (1983)
🧠 'मरुवाणी' क्या है?
[पटवार परीक्षा - 2011]
(1) राजस्थानी भाषा की मासिक पत्रिका।
(2) जयपुर रेडियो स्टेशन से प्रसारित कार्यक्रम।
(3) राजस्थानी भाषा का शब्दकोष।
(4) प्रमुख राजस्थानी गीतों का संग्रह।
Ans. (1)
[व्याख्या - मरुवाणी राजस्थानी भाषा की प्रथम अग्रणी पत्रिका थी।]
Such a adorable writing skills you have....
जवाब देंहटाएंWish you a lot blessings for your creative journey 🤗🤗🤗🙌🙌👍👍👍