लॉर्ड रिपन को स्थानीय स्वशासन का पिता कहा जाता है।
भारतीय संविधान में स्थानीय स्वशासन को राज्य सूची के अंतर्गत रखा गया है।
इसे दो भागों में विभक्त किया गया है-
1. ग्रामीण
2. शहरी
🙏 पंचायती राज व्यवस्था 🙏
73 वें संविधान संशोधन 1992 के अंतर्गत पंचायती राज व्यवस्था को अपनाया गया।
इस हेतु 11वीं अनुसूची जोड़ी गई।
पंचायतों का चुनाव राज्य चुनाव आयोग द्वारा संपन्न करवाया जाता है।
पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
स्वतंत्रता के बाद भारत में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का प्रारंभ 2 अक्टूबर 1959 को नागौर राजस्थान से हुआ।त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था
1. ग्रामीण स्तर पर- ग्राम पंचायत
2. विकास खंड/ब्लॉक स्तर पर- पंचायत समिति
✍️ग्राम पंचायत
👉वार्ड सभा
ग्राम पंचायत की सबसे छोटी इकाई
वार्ड सभा का मुखिया वार्ड पंच होता है।
👉ग्राम सभा- ग्राम पंचायत क्षेत्र की मतदाता सूची में दर्ज मतदाताओं की सभा।
ग्राम सभा की बैठक प्रत्येक तीन माह में एक बार अर्थात् वर्ष में चार बार होती है।
इसकी 26 जनवरी, 1 मई, 15 अगस्त व 2 अक्टूबर को बैठक होती है।
👉ग्राम पंचायत
छोटी-छोटी गांव को आपस में मिलाकर या 1 बड़े गांव की 1 ग्राम पंचायत होती है।
ग्राम पंचायत का मुखिया सरपंच होता है तथा वार्ड पंच उस ग्राम पंचायत के सदस्य होते हैं।
सभी वार्ड पंच सपने में से एक सदस्य को उप-सरपंच सुनते हैं।
ग्राम पंचायत की बैठक 1 माह में 2 बार होती है।
ग्राम पंचायत के कार्यों को क्रियान्वित करने हेतु ग्राम सेवक सरकारी कर्मचारी होता है, जो ग्राम पंचायत का पदेन सचिव होता है।
राजस्थान में बीकानेर पहली देसी रियासत थी, जहां 1928 में ग्राम पंचायत अधिनियम पारित कर ग्राम पंचायतों को वैधानिक दर्जा दिया गया।
राजस्थान पंचायत अधिनियम 1953 ईस्वी में लागू किया गया।
राज्य में पहली बार ग्राम पंचायत हेतु चुनाव फरवरी 1956 में संपन्न हुए।
पंचायत समितियों और जिला परिषद की स्थापना हेतु "राजस्थान पंचायत समिति और जिला परिषद अधिनियम 1959" बनाया गया, जिसके तहत राज्य में त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं हेतु चुनाव 1959 में संपन्न हुए।
ग्राम सचिवालय व्यवस्था
प्रत्येक माह की 5, 12, 20 व 27 तारीख को ग्राम पंचायत स्तरीय कर्मचारी (जैसे- ग्राम सेवक पटवारी कृषि पर्यवेक्षक एएनएम हैंडपंप मिस्त्री आदि) दिनभर ग्राम पंचायत मुख्यालय पर उपस्थित रहते हैं तथा वह गांव के लोगों की समस्या सुनते हैं और उनका समाधान करते हैं।
✍️ पंचायत समिति
प्रत्येक जिले को विकास खंडों में बांटा गया है तथा प्रत्येक विकास खंड स्तर पर पंचायत समिति का गठन किया गया है।
न्यूनतम आयु- 25 वर्ष
पंचायत समिति का मुखिया प्रधान कहलाता है।
प्रत्येक पंचायत समिति क्षेत्र वार्ड मे विभाजित किया जाता है।
प्रत्येक वार्ड की मतदाता अपने एक प्रतिनिधि का निर्वाचन करती हैं, जो पंचायत समिति सदस्य कहलाते हैं। यह प्रधान वह एक उपप्रधान को अपने में से निर्वाचित करते हैं।पंचायत समिति क्षेत्र के विधानसभा सदस्य, उस क्षेत्र में स्थित सभी ग्राम पंचायत के सरपंच तथा पंचायत समिति वार्ड के सदस्य पंचायत समिति के सदस्य होते हैं।
✍️ जिला परिषद्
पंचायती राज व्यवस्था की तीसरी सर्वोच्च इकाई।
जिला परिषद् का मुख्य जिला प्रमुख होता है।
1 जिले की सभी पंचायत समितियों को मिलाकर जिला परिषद् का गठन किया जाता है और इसका मुख्यालय जिला मुख्यालय पर होता है।
जिला परिषद् के गठन के लिए पूरे जिले को वर्डों में बांटा जाता है तथा प्रत्येक वार्ड अपने एक प्रतिनिधि का निर्वाचन करता है, जो जिला परिषद् सदस्य कहलाता है।
यह जिला परिषद् सदस्य अपने में से एक को जिला प्रमुख व उप-जिला प्रमुख निर्वाचित करते हैं।
उस जिले से निर्वाचित विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा की सदस्य तथा जिले की समस्त पंचायत समितियों के प्रधान भी जिला परिषद् के सदस्य होते हैं।
यह ग्राम पंचायतों एवं राज्य सरकार के मध्य कड़ी का कार्य करता है।
🙏नगरीय स्वशासन/शहरी स्वशासन🙏
इस हेतु राजस्थान नगरपालिका अधिनियम 1959 बनाया गया।
74 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के द्वारा इसे वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।
यह अधिनियम 1 जून 1993 को लागू हुआ।
इस हेतू बारहवीं अनुसूची जोड़ी गई।
न्यूनतम आयु- 21 वर्ष
नगरीय स्वशासन की त्रिस्तरीय व्यवस्था
1. नगर पालिका बोर्ड -25 हजार से अधिक एवं 1 लाख से कम जनसंख्या वाले नगर
इसका मुखिया नगरपालिकाध्यक्ष कहलाता है।
शपथ- पीठासीन अधिकारी
त्यागपत्र- E.O
2. नगर परिषद्- 1 लाख से अधिक एवं 5 लाख से कम जनसंख्या वाले नगर
इसका मुखिया सभापति कहलाता है।
शपथ - E.O.
त्यागपत्र- E.O
3. नगर निगम- 5 लाख या उससे अधिक जनसंख्या वाले नगर तथा सालाना आय ₹1cr.₹ से अधिक है
इसका मुखिया मेयर या महापौर के कहलाता है।
राजस्थान में कुल 5 नगर निगम हैं।
शपथ- E.O
त्यागपत्र- राज्य सरकार
इनके क्षेत्रों को वार्डों में बांटा जाता है तथा मतदाता अपने एक प्रतिनिधि का निर्वाचन करते हैं, जिसे पार्षद् कहा जाता है।
उस क्षेत्र के लोकसभा व विधानसभा की सदस्य तथा कुछ मनोनीत लोग भी इसके सदस्य होते हैं।
निर्वाचित पार्षद अपने में से किसी एक को अपना मुखिया व एक उप-मुखिया चुनते हैं।
प्रथम नगर पालिका- स्थापना माउंट आबू में 1865 ईस्वी में
प्रथम नगर परिषद्- अजमेर में 1959 में
प्रथम निगम- जयपुर में 1993 में
[ भारत में सबसे पहले नगरपालिका की शुरूआत चैन्नई से 1667 में मानी।]
[ नोट:-अनुच्छेद 243 (जेड-ए) चुनाव आयुक्त का प्रावधान।
नियुक्ति - राज्यपाल द्वारा।]
राजस्थान सरकार ने 18 मार्च 2008 को शहरी निकायों के निर्वाचन में 50 फ़ीसदी महिलाओं को रिजर्व किया।
राजस्थान में शहरी निकायों से संबंधित संशोधन अध्यादेश 2008 के तहत महापौर, सभापति व अध्यक्ष को सीधा जनता को चुनने का अधिकार दे दिया।
जनता इन्हें तीन चौथाई बहुमत से अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से हटा भी सकती है।
इसके अंतर्गत स्वयं को अपना बजट बनाने व पारित करने का अधिकार दिया गया।
वर्ष में कम से कम 2 बैठक बुलाना अनिवार्य होगा तथा दो बेटों के मध्य अंतर 60 दिनों से अधिक का नहीं होगा।
50,000 से अधिक आबादी वाले शहरों हेतु एरिया सभा का गठन अनिवार्य कर दिया गया।
वर्तमान राजस्थान में सात नगर निगम हैं।
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