एससीओ विदेश मंत्रियों की परिषद की तीसरी बैठक, 2020
- 9-10 सितंबर, 2020 के मध्य शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के विदेश मंत्रियों की परिषद की तीसरी बैठक, 2020 संपन्न हुई।
- इस वार्षिक शिखर बैठक की मेजबानी और अध्यक्षता किर्गिस्तान के राष्ट्रपति सूरोनबे जीनबेकोव (Sooronbay Jeenbekov) ने की।
- यह तीसरा अवसर है जब किर्गिस्तान ने शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता की है। इसके पूर्व वर्ष 2007 तथा वर्ष 2013 में भी किर्गिस्तान ने SCO शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता की थी।
- यह तीसरा अवसर है जब इस बैठक में भारत ने पूर्ण सदस्य की हैसियत से भाग लिया।
- इस बैठक में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने भाग लिया।
- इसमें आगामी शिखर सम्मेलन की तैयारियों की समीक्षा की गई और विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया।
- इससे पहले की दो बैठके अप्रैल, 2018 में बीजिंग में और मई 2019 में बिश्केक में हुई थी।
SCO के लक्ष्य
- सदस्य देशों के मध्य परस्पर विश्वास तथा सद्भाव को मज़बूत करना।
- राजनैतिक, व्यापार एवं अर्थव्यवस्था, अनुसंधान व प्रौद्योगिकी तथा संस्कृति में प्रभावी सहयोग को बढ़ावा देना।
- शिक्षा, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, पर्यावरण संरक्षण, इत्यादि में क्षेत्रों में संबंधों को बढ़ाना।
- संबंधित क्षेत्र में शांति, सुरक्षा व स्थिरता बनाए रखना तथा सुनिश्चिता प्रदान करना।
- एक लोकतांत्रिक, निष्पक्ष एवं तर्कसंगत नव-अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था की स्थापना करना।
SCO के मार्गदर्शक सिद्धांत
- पारस्परिक विश्वास, आपसी लाभ, समानता, आपसी परामर्श, सांस्कृतिक विविधता के लिए सम्मान तथा सामान्य विकास की अवधारणा पर आधारित आंतरिक नीति।
- गुटनिरपेक्षता, किसी तीसरे देश को लक्ष्य न करना तथा उदार नीति पर आधारित बाह्य नीति।
SCO की संरचना
- राष्ट्र प्रमुखों की परिषद: यह SCO का सर्वोच्च निकाय है जो अन्य राष्ट्रों एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ अपनी आंतरिक गतिविधियों के माध्यम से तथा बातचीत कर अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार करती है।
- शासन प्रमुखों की परिषद: SCO के अंतर्गत आर्थिक क्षेत्रों से संबंधित मुद्दों पर वार्ता कर निर्णय लेती है तथा संगठन के बजट को मंज़ूरी देती है।
- विदेश मंत्रियों की परिषद: यह दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों से संबंधित मुद्दों पर विचार करती है।
- क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना (RATS.): आतंकवाद, अलगाववाद, पृथकतावाद, उग्रवाद तथा चरमपंथ से निपटने के मामले देखता है। Regional Anti-Terrorist Structure- RATS की कार्यकारी समिति का कार्यालय उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में स्थित है।
- शंघाई सहयोग संगठन सचिवालय: यह सूचनात्मक, विश्लेषणात्मक तथा संगठनात्मक सहायता प्रदान करने हेतु बीजिंग में अवस्थित है। इसकी स्थापना 2004 में की गई।
- इनकी नियुक्ति तीन वर्षों के लिये की जाती है।
SCO की प्रमुख गतिविधियाँ
- प्रारंभ में SCO ने मध्य एशिया में आतंकवाद, अलगाववाद तथा उग्रवाद को रोकने हेतु परस्पर अंतर-क्षेत्रीय प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया।
- वर्ष 2006 में, वैश्विक वित्त पोषण के स्रोत के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थों की तस्करी को शामिल करने हेतु संगठन की कार्यसूची को विस्तार दिया गया।
- वर्ष 2008 में SCO ने अफगानिस्तान में स्थिरता लाने के लिए सक्रिय रूप से भाग लिया।
- लगभग इसी समय SCO ने विभिन्न प्रकार की आर्थिक गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू किया।
- इससे पहले वर्ष 2003 में अपने भौगोलिक क्षेत्र के भीतर मुक्त व्यापार क्षेत्र की स्थापना हेतु SCO सदस्य देशों ने बहुपक्षीय व्यापार एवं आर्थिक सहयोग हेतु 20 वर्ष के कार्यक्रम पर हस्ताक्षर किए।
SCO की विशेषताएँ
- SCO में वैश्विक जनसंख्या का 40%, वैश्विक GDP का लगभग 20% तथा विश्व के कुल भू-भाग का 22% शामिल है।
- अपने भौगोलिक महत्त्व के चलते SCO एशियाई क्षेत्र में रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है।
- अपनी इस विशेषता के कारण SCO मध्य एशिया को नियंत्रित करने तथा क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को सीमित करने में सक्षम है।
- SCO को उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के समकक्ष के रूप में भी जाना जाता है।
SCO के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ
- SCO की सुरक्षा चुनौतियों में आतंकवाद, उग्रवाद तथा अलगाववाद का मुकाबला करना; मादक पदार्थों तथा हथियारों की तस्करी को रोकना एवं अवैध आप्रवासन की रोकथाम करना इत्यादि शामिल हैं।
- भौगोलिक रूप से निकटता होते हुए भी संगठन के सदस्यों के इतिहास, पृष्ठभूमि, भाषा, राष्ट्रीय हितों एवं सरकार, संपन्नता व संस्कृति के रूप में समृद्ध विविधता SCO के निर्णयों लेने की प्रक्रिया को चुनौतीपूर्ण बनाते है।
- आपसी सीमा विवाद के कारण हो रहे आपसी टकराव को रोकना।
भारत के लिये SCO का महत्त्व
- SCO को इस समय दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन माना जाता है और इसमें चीन तथा रूस के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है। इस संगठन में शामिल होने से भारत का अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व बढ़ा है।
- भारतीय हितों की जो चुनौतियाँ हैं, चाहे वे आतंकवाद से जुड़ी हों, सीमा विवाद हो, ऊर्जा की आपूर्ति हो या प्रवासियों का मुद्दा...ये सभी मुद्दे भारत और SCO दोनों के लिए अहम हैं और ऐसे में भारत के इस संगठन से जुड़ने से दोनों को परस्पर लाभ होगा।
- SCO की सदस्यता मिलने के साथ ही अब भारत को एक बड़ा वैश्विक मंच मिल गया है। SCO यूरेशिया का एक ऐसा राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है जिसका केंद्र मध्य एशिया और इसका पड़ोस है। ऐसे में इस संगठन की सदस्यता भारत के लिए कई मौके उपलब्ध करवाने वाली साबित हो सकती है।
- चूँकि चीन SCO के माध्यम से क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों को पूरा करना चाहता है तो भारत भी इस स्थिति का लाभ उठाते हुए पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए चीन का सहयोग मांग सकता है, जैसा उसने हाल ही में अज़हर मसूद के मामले में किया और उसे अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करवाया।
- मध्य एशिया के देश जो प्राकृतिक गैस-तेल भंडार के मामले में धनी हैं, उनके साथ संबंधों को विस्तार देने में SCO भारत के लिए एक अच्छा ज़रिया बन सकता सकता है। भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और रूस व यूरोप तक व्यापार के ज़मीनी मार्ग खोलने के लिये इस मंच का इस्तेमाल करना चाहिये।
- भारत के लिये SCO की सदस्यता क्षेत्रीय एकीकरण, सीमाओं के पार संपर्क एवं स्थिरता को बढ़ावा देने में सहायता प्रदान कर सकती है।
- SCO की क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना (RATS) के माध्यम से भारत गुप्त सूचनाएँ साझा करने, कानून प्रवर्तन और सर्वोत्तम प्रथाओं अथवा प्रौद्योगिकियों के विकास की दिशा में कार्य कर अपनी आतंकवाद विरोधी क्षमताओं में सुधार कर सकता है।
- SCO के माध्यम से भारत मादक पदार्थों की तस्करी तथा छोटे हथियारों के प्रसार पर भी रोक लगाने का प्रयास कर सकता है।
- आतंकवाद एवं कट्टरतावाद की सामान्य चुनौतियों को लेकर साझा प्रयास किये जा सकते हैं।
- लंबे समय से अटकी हुई तापी (तुर्कमेनिस्तान-अफग़ानिस्तान-पाकिस्तान-भारत) पाइपलाइन जैसी परियोजनाओं पर काम शुरू करने में तथा IPI (ईरान-पाकिस्तान-भारत) पाइपलाइन को SCO के माध्यम से सहायता मिल सकती है।
- भारत तथा मध्य एशिया के बीच व्यापार में आने वाली प्रमुख बाधाओं को दूर करने के लिये SCO सहायता कर सकता है, क्योंकि यह मध्य एशिया के लिए एक वैकल्पिक मार्ग के रूप में कार्य करता है।
- SCO के माध्यम से सदस्य देशों के साथ अपने आर्थिक संबंधों का विस्तार करते हुए भारत को मध्य एशियाई देशों के साथ सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंचार, बैंकिंग, वित्तीय तथा फार्मा उद्योगों हेतु एक विशाल बाज़ार मिल सकता है।
- सावधानी से इस मंच का इस्तेमाल करते हुए भारत अपने इस विस्तारित पड़ोस (मध्य एशिया) में सक्रिय भूमिका निभा सकता है तथा साथ ही यूरेशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने का प्रयास भी कर सकता है।
- सबसे बड़ी बात यह कि SCO भारत को अपने पुराने तथा विश्वसनीय मित्र रूस के साथ अपने चीन और पाकिस्तान जैसे चिर प्रतिद्वंद्वियों के साथ जुड़ने के लिए एक साझा मंच प्रदान करता है।
SCO में भारत के लिये चुनौतियाँ
पाकिस्तान भी SCO का सदस्य है और वह भारत की राह में दुश्वारियाँ तथा कठिनाइयों का कारण लगातार बनता है। ऐसे में भारत की स्वयं को मुखर तौर पर पेश करने की क्षमता प्रभावित होगी। वर्तमान में चीन के साथ चल रहा सीमा विवाद भी संस्थापक सदस्य चीन के साथ रिश्तो में कठिनाइयां पैदा कर रहा है। इसके अलावा चीन एवं रूस के SCO के सह-संस्थापक होने और इसमें इन देशों की प्रभावी भूमिका होने की वज़ह से भारत को अपनी स्थिति मज़बूत बनाने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही SCO का रुख परंपरागत रूप से पश्चिम विरोधी है, जिसकी वज़ह से भारत को पश्चिम देशों के साथ अपनी बढ़ती साझेदारी में संतुलन कायम करना होगा।
- SCO में शामिल होने के निर्णय को महत्त्वपूर्ण होते हुए भी भारत सरकार की सबसे अधिक उलझी हुई विदेशी नीतियों में से एक माना जाता है।
- क्योंकि इसी समय भारत का झुकाव पश्चिमी देशों और विशेषकर क्वाड (QUAD) को मज़बूत करने पर था।
- वर्ष 2014 में भारत और पाकिस्तान के बीच सभी संबंध (वार्ता, व्यापार आदि) समाप्त कर दिये गए तथा भारत ने पाकिस्तान के साथ तनाव के कारण सार्क (SAARC) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया।
- हालाँकि दोनों देशों के प्रतिनिधि SCO की सभी बैठकों में शामिल हुए हैं।
- भारत द्वारा सभी वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान को सीमा-पार आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिये ज़िम्मेदार बताया जाता है, परंतु SCO के तहत RATS के सदस्य के रूप में भारत और पाकिस्तान के सशस्त्र बल सैन्य अभ्यास और आतंकवाद-विरोधी अभ्यास में हिस्सा लेते हैं।
SCO के लिये नए मौके और चुनौतियाँ
2001 में अपनी स्थापना के बाद से 2017 में भारत और पाकिस्तान को SCO में शामिल करना इसका पहला विस्तार था। दरअसल, SCO एक नए तरह का क्षेत्रीय संगठन है जो शीतयुद्ध के बाद के काल में सुरक्षा, अर्थशास्त्र, राजनीति और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देता है। शंघाई विचारधारा द्वारा मार्गदर्शित “आपसी विश्वास, आपसी लाभ, समानता, परामर्श, विभिन्न सभ्यताओं के लिए सम्मान और साझा विकास” की तलाश में SCO एक आदर्श का पालन करता है। इसके तहत खुलेपन को बढ़ावा देते हुए न तो किसी प्रकार संधि की जाती है और न ही किसी देश या क्षेत्र के अंदरूनी मामलों में दखलंदाज़ी की जाती है। यही कारण है कि इसने सदस्य देशों के बीच एक नए तरह का संबंध और क्षेत्रीय सहयोग स्थापित किया है। इसमें स्थायी शांति और मैत्री, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये सुरक्षा की नई संकल्पनाएँ पेश करना, सहयोग और कूटनीति समाहित है, जो पुरानी हो चुकी शीतयुद्ध की मानसकिता के बिलकुल विपरीत है तथा अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांतों और प्रथाओं को समृद्ध बनाने वाली है।
SCO का सदस्य बन जाने से यदि भारत और चीन के आपसी तालमेल में बढ़ोतरी होती है तो अमेरिका के वैश्विक दबदबे का सामना करने के लिये यह दोनों ही देशों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा तथा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम करना अमेरिका के लिये आसान नहीं होगा।
SCO के आठ आश्चर्य:
- SCO के आठ आश्चर्य निम्नलिखित हैं-
- भारत- स्टैच्यू ऑफ यूनिटी
- कज़ाखस्तान- तमगली के पुरातात्त्विक परिदृश्य (The Archaeological Landscape of Tamgaly)
- किर्गिज़स्तान- इसीक-कुल झील (Lake Issyk-Kul)
- चीन- डेमिंग पैलेस (Daming Palace)
- पाकिस्तान- मुगल विरासत, लाहौर (Mughals Heritage)
- रूस- द गोल्डन रिंग सिटीज़ (The Golden Ring of Cities)
- ताजिकिस्तान- द पैलेस ऑफ नौरोज़ (The Palace of Nowruz)
- उज़्बेकिस्तान- द पोई कालोन कॉम्प्लेक्स (The Poi Kalon complex)
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