1853 का राज लेख/चार्टर एक्ट
इसे भारतीयों द्वारा कंपनी के प्रतिक्रियावादी शासन की समाप्ति की मांग तथा गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी द्वारा कंपनी के शासन में सुधार हेतु प्रस्तुत रिपोर्ट के संदर्भ में पारित किया गया।
[6 नए सदस्य - बंगाल, बंबई, मद्रास तथा आगरा प्रांत में प्रत्येक से एक-एक सदस्य, एक मुख्य न्यायाधीश तथा एक कनिष्ठ न्यायाधीश।]
👉विधि निर्माण हेतु भारत के लिए एक अलग 12 सदस्यीय विधान परिषद की स्थापना की गई। विभिन्न क्षेत्रों में प्रांतों के प्रतिनिधियों को इसका सदस्य बना कर सर्वप्रथम क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व का सिद्धांत लागू किया गया।
👉विधि को अधिनियम बनने के लिए गवर्नर जनरल की अनुमति आवश्यक थी। इन विधियों को गवर्नर जनरल वीटो कर सकता था।
👉विधि सदस्यों को गवर्नर जनरल की परिषद का पूर्ण सदस्य बना दिया गया।
👉बंगाल के प्रशासनिक कार्य के लिए एक पृथक लेफ्टिनेंट गवर्नर नियुक्त किया गया।
👉 निदेशक मंडल के सदस्यों की संख्या 24 से घटाकर 18 कर दी गई। इनमें से छह सदस्य सीधे ब्रिटिश क्रॉउन द्वारा नियुक्त किए जाते थे।
👉 सिविल सेवकों की भर्ती एवं चयन हेतु खुली प्रतियोगिता भारतीय नागरिकों के लिए खोल दी गई। इस हेतु 1854 में मैकाले समिति की नियुक्ति की गई।
👉 अनिश्चित समय हेतु कंपनी के शासन को विस्तारित कर दिया गया। अब ब्रिटिश संसद को किसी भी समय कंपनी के शासन को समाप्त करने का अधिकार था।
👉 यह राजलेख भारतीय शासन के (ब्रिटिश कालीन) इतिहास में अंतिम चार्टर (राजलेख) था।
👉इंग्लैंड में एक विधि आयोग का गठन भारतीय विधि आयोग की रिपोर्ट पर विचार करने के लिए किया गया।
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