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1813 ईस्वी का चार्टर अधिनियम

1813 ईस्वी का चार्टर अधिनियम

👉 कंपनी के अधिकार पत्र को 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया।
👉 चीन से व्यापार तथा चाय की व्यापार के अलावा कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर दिए गए। अब सभी ब्रिटिश लोग व्यापार कर सकते थे (चाय व चीन के साथ व्यापार को छोड़कर)।
👉 इस एक्ट के द्वारा पहली बार ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार की अनुमति दी गई।
👉 भारतीयों के साहित्य, शिक्षा के प्रोत्साहन हेतु 1 लाख ₹ प्रतिवर्ष खर्च करने की व्यवस्था की गई।
👉 स्थानीय स्वायत्तशासी संस्थाओं को करारोपण का अधिकार दिया गया। कर नहीं देने पर दंड की व्यवस्था की।
👉कलकत्ता, बंबई और मद्रास सरकारों द्वारा निर्मित विधियों का ब्रिटिश संसद द्वारा अनुमोदन अनिवार्य कर दिया गया।
👉 ब्रिटिश सम्राट की स्वीकृति से कंपनी को गवर्नर जनरल, गवर्नरों तथा प्रधान सेनापतियों की नियुक्ति का अधिकार दिया गया।
👉भारत में आकर बसने तथा व्यापार करने के लिए आने वाले अंग्रेजों को लाइसेंस लेना अनिवार्य कर दिया गया। 


Charter Act of 1813 AD


👉Company's charter was extended to another 20 years.

👉Apart from trade with China and trade of tea, the company's trade monopolies were abolished.  Now all the British people could trade (except tea and trade with China).

👉British missionaries were given legal permission to spread Christianity in India.

👉The Act also made a provision to spend one lakh rupees annually on the education of Indians.

 👉 Local autonomous institutions were given the right to taxation.  Provided punishment for not paying taxes.

👉Approval by the British Parliament made the laws made by the governments of Kolkata, Bombay and Madras mandatory.

👉With the approval of the British Emperor, the company was empowered to appoint the Governor General, Governors and Chief Generals.

 👉The licence was made compulsory for the British to come to India to settle and do business.


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