वित्त आयोग(Finance Commission)
संघ और राज्यों के बीच राजस्व का वितरण
संघ सूची में उल्लिखित औषधीय और प्रसाधन निर्मितियों पर ऐसे स्टाम्प शुल्क तथा ऐसे उत्पाद शुल्क भारत सरकार द्वारा लगाए जाएंगे, किन्तु उनका संग्रहण निम्नलिखित रूप में किया जाएगा-
- ऐसे मामले में जहां ऐसे शुल्क किसी संघ राज्य क्षेत्र के भीतर भारत सरकार द्वारा लगाए जाने योग्य हों, और
- अन्य मामलों में, उन राज्यों द्वारा जिनके भीतर ऐसे शुल्क क्रमशः लगाए जाने योग्य हैं।
- किसी भी वित्तीय वर्ष में किसी राज्य में लगाए जाने योग्य किसी ऐसे शुल्क की आय भारत की संचित निधि का भाग नहीं होगी, बल्कि उस राज्य को सौंप दी जाएगी।
- 226ए [(1) माल की बिक्री या खरीद पर कर और माल की परेषण पर कर भारत सरकार द्वारा लगाए जाएंगे और संग्रहीत किए जाएंगे, लेकिन उन्हें खंड (2) में प्रदान की गई रीति से 1 अप्रैल, 1996 को या उसके बाद राज्यों को सौंपा जाएगा और सौंपा गया समझा जाएगा।
स्पष्टीकरण-इस खंड के प्रयोजनों के लिए, -
- वस्तुओं के क्रय या विक्रय पर कर से तात्पर्य समाचार-पत्रों के अलावा अन्य वस्तुओं के क्रय या विक्रय पर कर से है, जहां ऐसा क्रय या विक्रय अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है;
- माल की खेप पर कर से तात्पर्य माल की खेप पर कर से है (चाहे खेप उसे बनाने वाले व्यक्ति को हो या किसी अन्य व्यक्ति को), जहां ऐसी खेप अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान होती है;
- (2) किसी वित्तीय वर्ष में किसी ऐसे कर की शुद्ध आय, वहां तक के सिवाय जहां तक वह आय संघ राज्यक्षेत्रों की मानी जा सकने वाली आय है, भारत की संचित निधि का भाग नहीं होगी, अपितु उस राज्य को सौंप दी जाएगी जिसके भीतर वह कर उस वर्ष उद्ग्रहणीय है, और उन राज्यों के बीच वितरण के ऐसे सिद्धांतों के अनुसार वितरित की जाएगी, जिन्हें संसद विधि द्वारा बनाए।]
- 227 [(3) संसद विधि द्वारा यह अवधारित करने के लिए सिद्धांत बना सकेगी कि कोई _230[माल का क्रय या विक्रय या प्रेषण] अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान कब होता है।]
- 227ए [(1) संघ सूची में निर्दिष्ट सभी कर और शुल्क, क्रमशः अनुच्छेद 268 और 269 में निर्दिष्ट शुल्कों और करों को छोड़कर, अनुच्छेद 271 में निर्दिष्ट करों और शुल्कों पर अधिभार और संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के अधीन विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए लगाया गया कोई उपकर भारत सरकार द्वारा लगाया और एकत्र किया जाएगा तथा संघ और राज्यों के बीच खंड (2) में उपबंधित रीति से वितरित किया जाएगा।
- (2) किसी वित्तीय वर्ष में किसी ऐसे कर या शुल्क की शुद्ध आय का ऐसा प्रतिशत, जैसा विहित किया जा सकेगा, भारत की संचित निधि का भाग नहीं होगा, अपितु उन राज्यों को सौंप दिया जाएगा जिनके भीतर वह कर या शुल्क उस वर्ष उद्ग्रहणीय है, और उन राज्यों के बीच ऐसी रीति से और ऐसे समय से वितरित किया जाएगा, जैसा खंड (3) में उपबंधित रीति से विहित किया जाए।
(3) इस अनुच्छेद में विहित का अर्थ है -
- जब तक राष्ट्रपति द्वारा आदेश द्वारा निर्धारित वित्त आयोग का गठन नहीं किया जाता है, और
- वित्त आयोग के गठन के पश्चात्, वित्त आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के पश्चात् राष्ट्रपति द्वारा आदेश द्वारा विहित की गई व्यवस्था।]
- अनुच्छेद 269 और 270 में किसी बात के होते हुए भी, संसद किसी भी समय उन अनुच्छेदों में निर्दिष्ट किसी शुल्क या कर में संघ के प्रयोजनों के लिए अधिभार बढ़ा सकेगी और ऐसे किसी अधिभार की संपूर्ण आय भारत की संचित निधि का भाग होगी।
- कोई विधेयक या संशोधन, जो कोई ऐसा कर या शुल्क लगाता है या उसमें परिवर्तन करता है, जिसमें राज्य हितबद्ध हैं, या जो भारतीय आयकर से संबंधित अधिनियमों के प्रयोजनों के लिए परिभाषित "कृषि आय" पद के अर्थ में परिवर्तन करता है, या जो उन सिद्धांतों पर प्रभाव डालता है, जिनके आधार पर इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में से किसी के अधीन राज्यों को धन वितरणीय है या हो सकता है, या जो संघ के प्रयोजनों के लिए ऐसा कोई अधिभार लगाता है, जैसा इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में वर्णित है, राष्ट्रपति की सिफारिश पर ही संसद के किसी सदन में पुरःस्थापित या प्रस्तावित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
इस अनुच्छेद में, "कर या शुल्क जिसमें राज्य हितबद्ध हैं" से तात्पर्य है -
- कोई कर या शुल्क जिसकी शुद्ध आय का पूरा या आंशिक भाग किसी राज्य को सौंपा जाता है; या
- शुद्ध आय के संदर्भ में कोई कर या शुल्क जिसके लिए भारत की संचित निधि में से किसी राज्य को कुछ समय के लिए राशि देय है।
संसद विधि द्वारा ऐसी राशियां प्रदान करे जो प्रत्येक वर्ष भारत की संचित निधि पर ऐसे राज्यों के राजस्व में सहायता अनुदान के रूप में भारित की जाएंगी जिन्हें संसद सहायता की आवश्यकता समझे, तथा विभिन्न राज्यों के लिए भिन्न-भिन्न राशियां नियत की जा सकेंगी:
परंतु भारत की संचित निधि में से किसी राज्य के राजस्व में सहायता अनुदान के रूप में ऐसी पूंजी और आवर्ती राशियां दी जाएंगी जो उस राज्य को विकास की ऐसी योजनाओं की लागतों को पूरा करने में सक्षम बनाने के लिए आवश्यक हों, जो राज्य द्वारा भारत सरकार के अनुमोदन से उस राज्य में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण को बढ़ावा देने या अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के स्तर को उस राज्य के शेष क्षेत्रों के प्रशासन के स्तर तक बढ़ाने के प्रयोजन के लिए शुरू की जा सकती हैं:
यह और प्रावधान है कि असम राज्य के राजस्व में सहायता अनुदान के रूप में भारत की संचित निधि में से निम्नलिखित के समतुल्य पूंजीगत और आवर्ती राशियां दी जाएंगी-
- छठी अनुसूची के पैरा 20 से संलग्न सारणी के भाग 1 में विनिर्दिष्ट जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले के दो वर्षों के दौरान राजस्व पर व्यय का औसत आधिक्य; तथा
- विकास की ऐसी योजनाओं की लागतें जो उस राज्य द्वारा भारत सरकार के अनुमोदन से उक्त क्षेत्रों के प्रशासन के स्तर को उस राज्य के शेष क्षेत्रों के प्रशासन के स्तर तक बढ़ाने के प्रयोजन के लिए शुरू की जा सकेंगी।
(1ए) अनुच्छेद 244ए के अधीन स्वायत्त राज्य के गठन के समय से ही ,-
- खंड (1) के दूसरे परंतुक के खंड (क) के अधीन देय कोई राशि, यदि स्वायत्त राज्य में उसमें निर्दिष्ट सभी जनजाति क्षेत्र सम्मिलित हैं, स्वायत्त राज्य को दी जाएगी और यदि स्वायत्त राज्य में उन जनजाति क्षेत्रों में से केवल कुछ ही सम्मिलित हैं, तो असम राज्य और स्वायत्त राज्य के बीच राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट अनुसार विभाजित की जाएगी;
- स्वायत्त राज्य के राजस्व में सहायता अनुदान के रूप में भारत की संचित निधि में से पूंजीगत तथा आवर्ती राशियां दी जाएंगी जो विकास की ऐसी योजनाओं की लागत के बराबर होंगी जिन्हें स्वायत्त राज्य द्वारा भारत सरकार के अनुमोदन से उस राज्य के प्रशासन के स्तर को शेष असम राज्य के प्रशासन के स्तर तक बढ़ाने के प्रयोजन के लिए हाथ में लिया जा सकता है।]
जब तक संसद द्वारा खंड (1) के अधीन उपबंध नहीं किया जाता है, तब तक उस खंड के अधीन संसद को प्रदत्त शक्तियां राष्ट्रपति द्वारा आदेश द्वारा प्रयोगयोग्य होंगी और इस खंड के अधीन राष्ट्रपति द्वारा किया गया कोई आदेश संसद द्वारा इस प्रकार किए गए किसी उपबंध के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा:
परंतु वित्त आयोग के गठन के पश्चात् राष्ट्रपति द्वारा इस खंड के अधीन कोई आदेश वित्त आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के पश्चात् ही दिया जाएगा, अन्यथा नहीं।
- राष्ट्रपति इस संविधान के प्रारंभ से दो वर्ष के भीतर और उसके बाद प्रत्येक पांचवें वर्ष की समाप्ति पर या ऐसे पूर्वतर समय पर, जिसे राष्ट्रपति आवश्यक समझे, आदेश द्वारा एक वित्त आयोग का गठन करेगा जिसमें एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्य होंगे, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
- संसद कानून द्वारा उन योग्यताओं का निर्धारण कर सकेगी जो आयोग के सदस्यों के रूप में नियुक्ति के लिए अपेक्षित होंगी तथा वह रीति निर्धारित कर सकेगी जिससे उनका चयन किया जाएगा।
आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को निम्नलिखित के संबंध में सिफारिशें करे-
- करों की शुद्ध आय का संघ और राज्यों के बीच वितरण, जिसे इस अध्याय के अधीन उनके बीच विभाजित किया जाना है या किया जा सकेगा और ऐसी आय के संबंधित हिस्सों का राज्यों के बीच आबंटन;
भारत की संचित निधि में से राज्यों के राजस्व के लिए सहायता अनुदान को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत;
- राज्य के वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर राज्य में पंचायतों के संसाधनों के अनुपूरण के लिए राज्य की समेकित निधि को बढ़ाने के लिए आवश्यक उपाय;
- राज्य के वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर राज्य में नगरपालिकाओं के संसाधनों के अनुपूरण के लिए राज्य की समेकित निधि को बढ़ाने के लिए आवश्यक उपाय;
- सुदृढ़ वित्त के हित में राष्ट्रपति द्वारा आयोग को भेजा गया कोई अन्य मामला।
- आयोग अपनी प्रक्रिया निर्धारित करेगा और अपने कार्यों के निष्पादन में उसे ऐसी शक्तियां प्राप्त होंगी जो संसद कानून द्वारा उसे प्रदान करेगी।
राष्ट्रपति इस संविधान के उपबंधों के अधीन वित्त आयोग द्वारा की गई प्रत्येक सिफारिश को, उस पर की गई कार्रवाई के स्पष्टीकरण ज्ञापन सहित, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा।
- संघ या राज्य किसी सार्वजनिक प्रयोजन के लिए कोई अनुदान दे सकता है, भले ही वह प्रयोजन ऐसा न हो जिसके संबंध में संसद या राज्य का विधानमंडल, यथास्थिति, कानून बना सके।
268. संघ द्वारा अधिरोपित किन्तु राज्यों द्वारा संग्रहित एवं विनियोजित शुल्क
269. संघ द्वारा लगाए गए और संगृहीत किए गए परंतु राज्यों को सौंपे गए कर
270. संघ और राज्यों के बीच लगाए जाने वाले और वितरित किए जाने वाले कर
271. संघ के प्रयोजनों के लिए कुछ शुल्कों और करों पर अधिभार
274. कराधान से संबंधित ऐसे विधेयकों के लिए राष्ट्रपति की पूर्व सिफारिश आवश्यक है जिनमें राज्यों की रुचि हो।
275. संघ से कुछ राज्यों को अनुदान
280. वित्त आयोग
281. वित्त आयोग की सिफारिशें
282. संघ या राज्य द्वारा अपने राजस्व में से चुकाया जाने वाला व्यय
- इस अधिनियम को वित्त आयोग (विविध प्रावधान) अधिनियम, 1951 कहा जा सकेगा।
- इस अधिनियम में, "आयोग" का तात्पर्य संविधान के अनुच्छेद 280 के खंड (1) के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा गठित वित्त आयोग से है।
आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के लिए योग्यताएं और उनके चयन का तरीका। आयोग के अध्यक्ष का चयन ऐसे व्यक्तियों में से किया जाएगा जिन्हें सार्वजनिक मामलों में अनुभव हो और चार अन्य सदस्यों का चयन ऐसे व्यक्तियों में से किया जाएगा जो--
- किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हैं, रहे हैं, या नियुक्त होने के योग्य हैं; या
- सरकार के वित्त और लेखा का विशेष ज्ञान हो; या
- वित्तीय मामलों और प्रशासन में व्यापक अनुभव हो; या
- अर्थशास्त्र का विशेष ज्ञान हो.
- सदस्यों को निरर्हित करने के लिए व्यक्तिगत हित। किसी व्यक्ति को आयोग का सदस्य नियुक्त करने से पूर्व राष्ट्रपति अपना समाधान करेगा कि उस व्यक्ति का ऐसा कोई वित्तीय या अन्य हित नहीं है, जिससे आयोग के सदस्य के रूप में उसके कृत्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है; और राष्ट्रपति समय-समय पर आयोग के प्रत्येक सदस्य के संबंध में भी अपना समाधान करेगा कि उसका ऐसा कोई हित नहीं है और कोई व्यक्ति, जो आयोग का सदस्य है या जिसे राष्ट्रपति आयोग का सदस्य नियुक्त करने का प्रस्ताव करता है, जब कभी राष्ट्रपति द्वारा ऐसा करने की अपेक्षा की जाए, उसे ऐसी जानकारी देगा, जिसे राष्ट्रपति इस धारा के अधीन उसके कर्तव्यों के पालन के लिए आवश्यक समझे।
आयोग का सदस्य होने के लिए निरर्हताएं- कोई व्यक्ति आयोग का सदस्य नियुक्त होने या होने के लिए निरर्हित होगा,-
- यदि वह विकृत चित्त का हो; 172
- यदि वह अनुन्मोचित दिवालिया है;
- यदि उसे नैतिक अधमता से जुड़े किसी अपराध का दोषी ठहराया गया हो;
- यदि उसके पास ऐसा वित्तीय या अन्य हित है जो आयोग के सदस्य के रूप में उसके कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने की संभावना है।
सदस्यों का कार्यकाल और पुनर्नियुक्ति की पात्रता
- सदस्यों की पदावधि तथा पुनर्नियुक्ति के लिए पात्रता। आयोग का प्रत्येक सदस्य ऐसी अवधि तक पद धारण करेगा, जो राष्ट्रपति द्वारा उसे नियुक्त करने के आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, किन्तु वह पुनर्नियुक्ति का पात्र होगा:
- सदस्यों की सेवा की शर्तें तथा वेतन और भत्ते। 1[(1)] आयोग के सदस्य आयोग को पूर्णकालिक या अंशकालिक सेवा देंगे जैसा कि राष्ट्रपति प्रत्येक मामले में विनिर्दिष्ट करे, और आयोग के सदस्यों को ऐसी फीस या वेतन तथा ऐसे भत्ते दिए जाएंगे जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त बनाए गए नियमों द्वारा [राजपत्र में अधिसूचना द्वारा] अवधारित करे।
- 2[(2) इस धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने पर सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा। तथापि, नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की वैधता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।]
(1) आयोग अपनी प्रक्रिया निर्धारित करेगा और अपने कार्यों के निष्पादन में निम्नलिखित मामलों के संबंध में किसी वाद की सुनवाई करते समय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां प्राप्त करेगा, अर्थात:-
- गवाहों को बुलाना और उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करना;
- किसी भी दस्तावेज़ को प्रस्तुत करने की आवश्यकता;
- किसी भी न्यायालय या कार्यालय से कोई सार्वजनिक अभिलेख प्राप्त करना।
- आयोग को किसी व्यक्ति से ऐसे बिंदुओं या विषयों पर जानकारी देने की अपेक्षा करने की शक्ति होगी, जो आयोग की राय में उसके विचाराधीन किसी विषय के लिए उपयोगी या उससे सुसंगत हो सकती हैं 3*[और इस प्रकार अपेक्षित कोई व्यक्ति, भारतीय आयकर अधिनियम, 1922 (1922 का 11) की धारा 54 की उपधारा
- (2) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 176 के अर्थ में ऐसी जानकारी देने के लिए वैध रूप से आबद्ध समझा जाएगा।]
- आयोग को दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) की धारा 480 और 482 के प्रयोजनों के लिए सिविल न्यायालय समझा जाएगा।
- स्पष्टीकरण.--साक्षियों को उपस्थित कराने के प्रयोजनों के लिए, आयोग की अधिकारिता की स्थानीय सीमाएं भारत के राज्यक्षेत्र की सीमाएं होंगी।
- 1986 के अधिनियम सं. 4 की धारा 2 और अनुसूची द्वारा (15-5-1986 से) धारा 7 को उपधारा (1) के रूप में पुन:संख्यांकित किया गया।
वही, धारा 2 और अनुसूची द्वारा अंतःस्थापित (15-5-1986 से)।
1955 के अधिनियम सं. 13 की धारा 2 द्वारा जोड़ा गया।
संक्षिप्त शीर्षक
परिभाषा
आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के लिए योग्यताएं और चयन का तरीका
सदस्यों को अयोग्य ठहराने में व्यक्तिगत रुचि
आयोग का सदस्य बनने के लिए अयोग्यताएं
बशर्ते कि वह राष्ट्रपति को संबोधित पत्र द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।
सदस्यों की सेवा की शर्तें तथा वेतन एवं भत्ते
आयोग की प्रक्रिया और शक्तियां
संक्षिप्त शीर्षक
इन नियमों को वित्त आयोग (वेतन और भत्ते) नियम, 1951 कहा जाएगा।
अध्यक्ष का वेतन और भत्ते
- आयोग के अध्यक्ष के रूप में पूर्णकालिक सेवा प्रदान करने के लिए नियुक्त व्यक्ति निम्नलिखित का हकदार होगा:-
- प्रति माह 3,500 रुपये का वेतन प्राप्त करना, जिसमें पेंशन, यदि कोई हो, को घटाकर, उसके द्वारा प्राप्त किसी अन्य प्रकार के सेवानिवृत्ति लाभ के पेंशन समकक्ष को शामिल करना;
(क) महंगाई भत्ता और अतिरिक्त महंगाई भत्ते ऐसी दरों पर प्राप्त करना, जो 3,500 रुपए प्रति माह वेतन पाने वाले केन्द्रीय सरकार के कर्मचारी को स्वीकार्य हैं।
- अध्यक्ष के रूप में उनके द्वारा की गई किसी यात्रा के लिए प्रथम श्रेणी के सरकारी कर्मचारी को अनुमेय दरों पर दैनिक भत्ते सहित यात्रा भत्ता प्राप्त करना;
- अपने कार्यकाल के दौरान तथा उसके तुरंत बाद 15 दिन की अतिरिक्त अवधि के लिए, दिल्ली में पूर्णतः सुसज्जित आवास का दावा करने पर, ऐसे उपयोग के लिए कोई किराया दिए बिना, तथा
- o किसी भी प्रतिपूरक भत्ते के रूप में कोई राशि नहीं।
- उसी दर से मासिक वेतन, जो उसे ऐसे न्यायाधीश के रूप में पद त्यागने से ठीक पहले उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में अनुमेय था, तथा जिसमें से पेंशन तथा उसके द्वारा प्राप्त अन्य प्रकार के सेवानिवृत्ति लाभों के समतुल्य पेंशन को घटा दिया जाएगा:
(क) आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभालने के लिए की गई यात्राओं के संबंध में, स्वयं और परिवार के सदस्यों के लिए उनके निवास के सामान्य स्थान से नई दिल्ली तक वातानुकूलित श्रेणी सहित उच्चतम श्रेणी के किराए से अधिक न होने वाला वास्तविक रेल किराया, साथ ही, मालिक के जोखिम पर यात्री रेलगाड़ी द्वारा एक मोटर कार के परिवहन पर होने वाला वास्तविक व्यय तथा अन्य व्यक्तिगत प्रभावों के परिवहन पर होने वाला वास्तविक व्यय, जो माल के एक पूरे वैगन के परिवहन पर होने वाले व्यय और माल की लोडिंग और अनलोडिंग पर होने वाले व्यय से अधिक न हो।
(ख) आयोग के अध्यक्ष के रूप में ड्यूटी पर यात्रा के संबंध में, तत्समय प्रवृत्त उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (यात्रा भत्ता) नियम, 1959 के खंड (च) के तीसरे उपबंध की मद (1) को छोड़कर, नियम 5 के अनुसार उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को स्वीकार्य भत्ते; तथा
(ग) आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार छोड़ने पर, वर्तमान में लागू सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीश (यात्रा भत्ता) नियम, 1959 के नियम 6 के उप-नियम (30) के अनुसार, सेवा से सेवानिवृत्ति पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को स्वीकार्य सुविधाओं का लाभ उठाया जाएगा; तथा
- अपने कार्यकाल के दौरान तथा उसके तुरंत बाद 15 दिन की अतिरिक्त अवधि के लिए, बिना किसी किराए के भुगतान के, दिल्ली में पूर्णतः सुसज्जित आवास के उपयोग के लिए;
- आयोग के अध्यक्ष के रूप में अंशकालिक सेवा प्रदान करने के लिए नियुक्त व्यक्ति को अध्यक्ष के रूप में उसके द्वारा बिताई गई अवधि के लिए 75 रुपये प्रतिदिन का दैनिक भत्ता मिलेगा तथा वह ऐसे अध्यक्ष के रूप में उसके द्वारा की गई यात्राओं के लिए प्रथम श्रेणी के सरकारी कर्मचारी को अनुमन्य दरों पर यात्रा भत्ता (किन्तु दैनिक भत्ता नहीं) पाने का भी हकदार होगा।
परन्तु जहां कोई व्यक्ति, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका है, आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है, वहां वह निम्नलिखित का हकदार होगा:-
आगे यह भी प्रावधान है कि जहां उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश रह चुके व्यक्ति से भिन्न किसी व्यक्ति को इस प्रकार नियुक्त करके कैबिनेट मंत्री का पद दिया जाता है, वहां वह उपनियम में दिए गए वेतन, भत्ते और अन्य सुविधाओं के बदले में ऐसे वेतन, भत्ते और अन्य सुविधाओं का हकदार होगा, जो मंत्री वेतन और भत्ता अधिनियम, 1952 (1952 का 58) और उसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन मंत्री (उप मंत्री नहीं) को स्वीकार्य हैं।
परन्तु जहां इस प्रकार नियुक्त व्यक्ति संसद सदस्य है, वह इस उपनियम में उपबंधित भत्तों के बदले में आयोग के अध्यक्ष के रूप में अपने कर्तव्य पर बिताए प्रत्येक दिन के लिए उसी दर पर दैनिक भत्ता प्राप्त करेगा जो उसे संसद सदस्यों के वेतन और भत्ते अधिनियम, 1954 (1954 का 30) की धारा 3 के अधीन अनुज्ञेय है और वह ऐसे अध्यक्ष के रूप में अपने द्वारा की गई किसी यात्रा के लिए उसी दर पर यात्रा भत्ता प्राप्त करने का भी हकदार होगा जो उसे उक्त अधिनियम की धारा 4 और उसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन अनुज्ञेय है।
अन्य सदस्यों के वेतन एवं भत्ते
- भारत सरकार, राज्य सरकार या भारतीय रिजर्व बैंक के अधीन सेवारत कोई व्यक्ति, जो आयोग के सदस्य के रूप में पूर्णकालिक या अंशकालिक सेवा करने के लिए नियुक्त किया गया है, ऐसे वेतन और भत्ते प्राप्त करेगा, जैसा कि केन्द्रीय सरकार, रिजर्व बैंक के किसी कर्मचारी के रूप में उसके द्वारा प्राप्त वेतन और भत्तों को ध्यान में रखते हुए, प्रत्येक मामले में अवधारित करे।
- आयोग के सदस्य के रूप में पूर्णकालिक सेवा प्रदान करने के लिए नियुक्त कोई व्यक्ति (जो सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय न्यायाधीश या सरकारी कर्मचारी या रिजर्व बैंक का कर्मचारी या सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी या रिजर्व बैंक का सेवानिवृत्त कर्मचारी न हो) निम्नलिखित का हकदार होगा:-
- प्रति माह 3,000 रुपये वेतन प्राप्त करना;
- आयोग के सदस्य के रूप में उसके द्वारा की गई किसी यात्रा के लिए प्रथम श्रेणी के सरकारी कर्मचारी को अनुमेय दरों पर दैनिक भत्ते सहित यात्रा भत्ता प्राप्त करना;
- प्रति माह 75 रुपये की दर से प्रतिपूरक भत्ता प्राप्त करना; तथा
- मकान किराया भत्ते के रूप में कोई राशि नहीं ली जाएगी।
कोई व्यक्ति, जो सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी या रिजर्व बैंक का सेवानिवृत्त कर्मचारी (उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को छोड़कर) है और उसे आयोग के सदस्य के रूप में पूर्णकालिक सेवा देने के लिए नियुक्त किया गया है, वह निम्नलिखित का हकदार होगा:-
- उसी दर पर मासिक वेतन जो उसे सरकारी सेवा से या, यथास्थिति, सरकार की सेवा से या, यथास्थिति, रिजर्व बैंक की सेवा से सेवानिवृत्ति के ठीक पहले अनुमेय था, में से पेंशन और उसके द्वारा प्राप्त सेवानिवृत्ति लाभों के अन्य रूपों के समतुल्य पेंशन को घटा दिया जाएगा;
- आयोग के सदस्य के रूप में उनके द्वारा की गई किसी यात्रा के लिए प्रथम श्रेणी के सरकारी कर्मचारी को अनुमेय दरों पर दैनिक भत्ते सहित यात्रा भत्ता प्राप्त करना;
- प्रति माह 75 रुपये की दर से प्रतिपूरक भत्ता प्राप्त करना; तथा
- जब वह केन्द्रीय सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आवास में न रह रहा हो, तो उसे उसी दर पर मकान किराया भत्ता मिलेगा तथा ऐसी शर्तों और नियमों के अधीन होगा, जो समय-समय पर समकक्ष स्तर के सेवारत सरकारी कर्मचारी को लागू होते हैं।
एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय न्यायाधीश होने के नाते, आयोग के सदस्य के रूप में पूर्णकालिक सेवा प्रदान करने के लिए नियुक्त व्यक्ति, हकदार होगा
- प्रति माह 8,000 रुपये का वेतन प्राप्त करना, जिसमें पेंशन और किसी अन्य प्रकार के सेवानिवृत्ति लाभ के पेंशन समतुल्य को घटा दिया गया हो, लेकिन उसके द्वारा प्राप्त ग्रेच्युटी के पेंशन समतुल्य को छोड़कर;
- ऐसी दरों पर महंगाई भत्ता प्राप्त करना जो 6,700 रुपये प्रति माह वेतन पाने वाले केंद्रीय सरकार के कर्मचारी को स्वीकार्य है;
- आयोग के मुख्यालय स्टेशन पर उच्च न्यायालय के सेवारत न्यायाधीश को स्वीकार्य प्रतिपूरक (शहर) भत्ता प्राप्त करना;
- अपनी पुनर्नियुक्ति के समय अपनी पात्रता के अनुसार यात्रा भत्ता और दैनिक भत्ता प्राप्त करने का अधिकार। वह केन्द्रीय सरकार द्वारा संचालित अतिथि गृहों/निरीक्षण बंगलों में अस्थायी सरकारी आवास की सुविधा का भी हकदार होगा, जहाँ कहीं भी उपलब्ध हो, बाहरी स्थानों पर औपचारिक किराया देकर, उस श्रेणी का आवास जिसके लिए उच्चतम श्रेणी का सरकारी कर्मचारी पात्र है;
- अपने साधारण निवास स्थान से आयोग के मुख्यालय में कार्यभार ग्रहण करने के लिए की गई यात्राओं के संबंध में 5,100/- रुपये प्रतिमाह और उससे अधिक वेतन पाने वाले केन्द्रीय सरकार के कर्मचारी को स्वीकार्य दर पर यात्रा भत्ता प्राप्त करना;
- आयोग के सदस्य के रूप में कार्यभार छोड़ने पर आयोग के मुख्यालय से अपने साधारण निवास स्थान तक की यात्राओं के संबंध में 5,100/- रुपये प्रतिमाह और उससे अधिक वेतन पाने वाले केन्द्रीय सरकार के कर्मचारी को स्वीकार्य दर पर यात्रा भत्ता प्राप्त करना;
- निःशुल्क सुसज्जित आवास या उसके बदले वेतन के 121% की दर से मकान किराया भत्ता;
- केन्द्रीय सरकार स्वास्थ्य योजना में दिए गए अनुसार चिकित्सा उपचार और अस्पताल सुविधाएं और जहां केन्द्रीय सरकार स्वास्थ्य योजना उपलब्ध नहीं है, वहां मंत्रियों के वेतन और भत्ते अधिनियम, 1952 (1952 का 58) और उसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन कैबिनेट मंत्री को उपलब्ध चिकित्सा सुविधाएं;
- केंद्रीय सिविल सेवा (छुट्टी) नियम, 1972 के नियम 34 के अनुसार सेवानिवृत्ति के बाद पुनः नियोजित व्यक्ति को स्वीकार्य सभी प्रकार की छुट्टियां;
- स्वयं और अपने परिवार के लिए 5100/- रुपये और उससे अधिक प्रतिमाह वेतन पाने वाले केन्द्रीय सरकार के कर्मचारी को स्वीकार्य दर पर पुनः नियोजित पेंशनभोगियों के लिए स्वीकार्य अवकाश यात्रा रियायत का लाभ उठाना; तथा
- सेवारत न्यायाधीश को उसकी पुनर्नियुक्ति के समय मिलने वाली परिवहन सुविधाएं।
कोई व्यक्ति, जो सरकारी कर्मचारी या रिजर्व बैंक का कर्मचारी न हो, आयोग के सदस्य के रूप में अंशकालिक सेवा देने के लिए नियुक्त किया जाता है, वह हकदार होगा
प्रतिदिन भत्ता प्राप्त करने के लिए:
- बम्बई, कलकत्ता और दिल्ली में आयोग के सदस्य के रूप में उनके द्वारा बिताई गई ड्यूटी अवधि के लिए 60/- रुपये प्रतिदिन;
- अन्यत्र ऐसे कर्तव्य पर बिताए गए समय के लिए 50 रुपये प्रतिदिन, तथा
- ऐसे अंशकालिक सदस्य के रूप में उसके द्वारा की गई किसी यात्रा के लिए प्रथम श्रेणी के सरकारी कर्मचारी को स्वीकार्य दरों पर यात्रा भत्ता (किन्तु दैनिक भत्ता नहीं) प्राप्त करना;
- परन्तु जहां इस प्रकार नियुक्त व्यक्ति संसद सदस्य है, वहां वह इस उपनियम में दिए गए भत्ते के बदले में आयोग के सदस्य के रूप में अपने कर्तव्य पर बिताए प्रत्येक दिन के लिए उसी दर पर दैनिक भत्ता प्राप्त करेगा जो उसे संसद सदस्यों के वेतन और भत्ते अधिनियम, 1954 (1954 का 30) की धारा 3 के अधीन अनुज्ञेय है और वह ऐसे सदस्य के रूप में अपने द्वारा की गई किसी यात्रा के लिए उसी दर पर यात्रा भत्ता प्राप्त करने का भी हकदार होगा जो उसे उक्त अधिनियम की धारा 4 और उसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन अनुज्ञेय है।
जहां केन्द्र सरकार प्रदान करती है
- पूर्णकालिक सेवा प्रदान करने के लिए नियुक्त सदस्य, निवास या
- यदि किसी अध्यक्ष या सदस्य को सरकारी छात्रावास या ऐसे ही किसी आवास में अस्थायी आवास के साथ अंशकालिक सेवा प्रदान करने के लिए नियुक्त किया जाता है, तो ऐसा सदस्य या अध्यक्ष मूल नियमों के नियम 45-ए के अनुसार उस आवास या आवास के लिए किराया अदा करेगा।
वित्त आयोग (विविध उपबंध) अधिनियम, 1951 (1951 का XXXII) की धारा 7 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, केन्द्रीय सरकार निम्नलिखित फाइलें बनाती है, अर्थात:-
अध्यक्ष को स्वीकार्य अवकाश वेतन
यदि कोई व्यक्ति, जो सरकारी या भारतीय रिजर्व बैंक का कर्मचारी न हो, आयोग के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य के रूप में पूर्णकालिक सेवा देने के लिए नियुक्त किया जाता है और ऐसी नियुक्ति के पश्चात् वह व्यक्ति ऐसी सेवा देने के कारण या अन्यथा अस्थायी रूप से अक्षम हो जाता है, तो वह पूर्णकालिक सेवा देते समय के समान दर पर छुट्टी वेतन पाने का हकदार होगा, जो कुल अवधि के लिए होगा जो अध्यक्ष या अन्य के रूप में उसके द्वारा वास्तव में की गई पूर्णकालिक सेवा की अवधि के ग्यारहवें भाग से अधिक नहीं होगी, जैसा भी मामला हो।
अतिरिक्त महंगाई भत्ते के संबंध में विशेष प्रावधान
कोई व्यक्ति, जो सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हो या भारतीय रिजर्व बैंक का सेवानिवृत्त भाग हो, और जिसे आयोग के अध्यक्ष या सदस्य के रूप में पूर्णकालिक सेवा देने के लिए नियुक्त किया गया हो, यदि उस पद के पदधारियों को देय महंगाई भत्ता, जो उसने ऐसी सेवानिवृत्ति से ठीक पहले धारण किया था, ऐसी नियुक्ति के पश्चात अनंतिम महंगाई भत्ते के रूप में या किसी अन्य रीति से बढ़ा दिया गया हो, तो वह इन नियमों के पूर्वगामी उपबंधों के अनुसार वेतन के अतिरिक्त ऐसी वृद्धि की राशि के बराबर या उसके योग के बराबर राशि का, उसी रीति से और उसी सीमा तक हकदार होगा मानो वह ऐसे पद या सदस्य के रूप में अपनी नियुक्ति की तारीख से किसी पद पर पुनर्नियोजित हो गया हो।
Finance Commission |
Year of
establishment |
Chairman |
Operational duration |
First |
1951 |
K. C. Neogy |
1952–57 |
1956 |
K. Santhanam |
1957–62 |
|
1960 |
A. K. Chanda |
1962–66 |
|
Fourth |
1964 |
P. V. Rajamannar |
1966–69 |
Fifth |
1968 |
Mahavir Tyagi |
1969–74 |
1972 |
K. Brahmananda Reddy |
1974–79 |
|
Seventh |
1977 |
J. M. Shelat |
1979–84 |
Eighth |
1983 |
Y. B. Chavan |
1984–89 |
Ninth |
1987 |
N. K. P. Salve |
1989–95 |
Tenth |
1992 |
K. C. Pant |
1995–00 |
Eleventh |
1998 |
A. M. Khusro |
2000–05 |
Twelfth |
2002 |
C. Rangarajan |
2005–10 |
Thirteenth |
2007 |
Dr. Vijay L. Kelkar |
2010–15 |
Fourteenth |
2013 |
Dr. Y. V Reddy |
2015–20 |
Fifteenth |
2017 |
N. K. Singh |
2020-21; 2021-26 |
Sixteenth |
2023 |
Arvind Panagariya |
2026 - 31 |
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