🧾संविधान सभा की कार्यप्रणाली
संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को नई दिल्ली में संविधान हॉल में हुई, जिसे अब संसद भवन के सेंट्रल हॉल के नाम से जाना जाता है।
मुस्लिम लीग ने बैठक का बहिष्कार किया और अलग पाकिस्तान की मांग पर बल दिया। इसलिए बैठक में केवल 207 सदस्यों ने हिस्सा लिया। फ्रांस की तरह इस सभा के सबसे वरिष्ठ सदस्य डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा को सभा का अस्थायी सभापति चुना गया।
अग्रिम पंक्ति को सुशोभित करने वालों में पंडित जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, आचार्य जे.बी. कृपलानी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, श्रीमती सरोजिनी नायडू, श्री हरे-कृष्ण महताब, पंडित गोविंद बल्लभ पंत, डॉ. बी.आर.अम्बेडकर, श्री शरत चंद्र बोस, श्री सी. राजगोपालाचारी और श्री एम. आसफ अली शामिल थे। नौ महिलाओं सहित दो सौ सात प्रतिनिधि उपस्थित थे ।
उद्घाटन सत्र पूर्वाहन 11 बजे आचार्य कृपलानी द्वारा संविधान सभा के अस्थायी सभापति डॉ सच्चिदानंद सिन्हा के परिचय के साथ आरंभ हुआ।
सभापति के उद्घाटन भाषण और उपसभापति के नामनिर्देशन के पश्चात, सदस्यों से औपचारिक रूप से अपने परिचय पत्र प्रस्तुत करने का अनुरोध किया गया। सभी उपस्थित 207 सदस्यों द्वारा अपना परिचय पत्र प्रस्तुत किए जाने और पंजिका पर हस्ताक्षर किए जाने के उपरांत पहले दिन की कार्यवाही समाप्त हुई।
11 दिसंबर, 1946 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थायी सभापति (अध्यक्ष) चुना गया।
इसी तरह 25 जनवरी, 1947 को एच.सी. मुखर्जी/हरेन्द्र कुमार मुखर्जी सभा के उपाध्यक्ष चुने गए।
बाद में, सभा ने दो उपाध्यक्ष बनाने का संकल्प लिया। तदनुसार, 16 जुलाई, 1947 को वी.टी. कृष्णामाचारी को सभा के दूसरे उपाध्यक्ष के रूप में चुना गया।
13 दिसंबर, 1946 को पंडित नेहरू ने सभा में ऐतिहासिक 'उद्देश्य प्रस्ताव' पेश किया। इसमें सवैधानिक संरचना के ढांचे एवं दर्शन की झलक थी।
इस प्रस्ताव को 22 जनवरी, 1947 को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। इसने संविधान के स्वरूप को काफी हद तक प्रभावित किया। इसके परिवर्तित रूप से संविधान की प्रस्तावना बनी।
स्वतंत्रता अधिनियम द्वारा परिवर्तन:–
संविधान सभा से खुद को अलग रखने वाली देसी रियासतों के प्रतिनिधि धीरे-धीरे इसमें शामिल होने लगे। 28 अप्रैल, 1947 को छह राज्यों(बड़ौदा, बीकानेर, जयपुर, पटियाला, रीवा और उदयपुर) के प्रतिनिधि सभा के सदस्य बन चुके थे। 3 जून, 1947 को भारत के बंटवारे के लिए पेश की गयी मांउटबेटन योजना को स्वीकार करने के बाद अन्य देसी रियासतों के ज्यादातर प्रतिनिधियों ने सभा में अपनी सीटें ग्रहण कर लीं। भारतीय हिस्से की मुस्लिम लीग के सदस्य भी सभा में शामिल हो गए।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 ने सभा की स्थिति में निम्न तीन परिवर्तन किए:–
1. सभा को पूरी तरह संप्रभु निकाय बनाया गया, जो स्वेच्छा से कोई भी संविधान बना सकती थी। इस अधिनियम ने सभा को ब्रिटिश संसद द्वारा भारत के संबंध में बनाए गए किसी भी कानून को समाप्त करने अथवा बदलने का अधिकार दे दिया।
2. संविधान सभा एक विधायिका भी बन गई। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सभा को दो अलग-अलग काम सौंपे गए।
इनमें से एक था:-
- स्वतंत्र भारत के लिए संविधान बनाना
- देश के लिए आम कानून लागू करना
इन दोनों कार्यों को अलग-अलग दिन करना था।
इस प्रकार संविधान सभा स्वतंत्र भारत की पहली संसद बनी।
जब भी सभा की बैठक संविधान सभा के रूप में होती, इसकी अध्यक्षता डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद करते और जब बैठक बतौर विधायिका' होती तब इसकी अध्यक्षता जी.वी. मावलंकर करते थे।
डोमिनियन विधानमण्डल के रूप में संविधान सभा की पहली बार बैठक 17 नवंबर, 1947 को हुई तथा जी.वी. मावलंकर को इसका अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। संविधान सभा 26 नवंबर, 1949 तक इन दोनों रूपों में कार्य करती रही। इस समय तक संविधान निर्माण का कार्य पूरा हो चुका था।
3. मुस्लिम लीग के सदस्य [पाकिस्तान में शामिल हो चुके क्षेत्रों (पश्चिमी पंजाब, पूर्वी बंगाल, उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत, सिंध, बलूचिस्तान और असम का सिलहट जिला) पाकिस्तान से सम्बद्ध)] भारतीय संविधान सभा से अलग हो गए क्योंकि पाकिस्तान के लिए एक अलग संविधान सभा गठित की गई।
इसकी वजह से सन् 1946 में माउंटबेटन योजना के तहत तय की गई सदस्यों की कुल संख्या 389 सीटों की बजाय 299 तक आ गिरी। भारतीय प्रांतों (औपचारिक रूप से ब्रिटिश प्रांत) की संख्या 296 से 229 और देसी रियासतों की संख्या 93 से 70 कर दी गई।
31 दिसंबर, 1947 को राज्यवार सदस्यता की तालिका:–
संविधान के निर्माण और आम कानूनों को लागू करने के अलावा संविधान सभा ने निम्न कार्य भी किए:–
1. इसने मई 1949 में राष्ट्रमंडल में भारत की सदस्यता का सत्यापन किया।
2 साल, 11 माह और 18 दिनों में संविधान सभा की कुल 11 बैठकें/सत्र आयोजित किए, जिनमें कुल 165 दिन लगे।
संविधान निर्माताओं ने लगभग 60 देशों के संविधानों का अवलोकन किया और इसके प्रारूप पर 114 दिनों तक विचार हुआ।
संविधान के निर्माण पर कुल 64 लाख रुपये का खर्च आया।
24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा की अंतिम बैठक हुई।
इसके बाद सभा ने 26 जनवरी, 1950 से 1951-52 में हुए आम चुनावों के बाद बनने वाली नई संसद के निर्माण तक भारत की अंतरिम संसद के रूप में काम किया।
17 अप्रैल, 1952 को अंतरिम संसद का अस्तित्व समाप्त हो गया। पहली निर्वाचित संसद दोनों सदनों के साथ मई 1952 में अस्तित्व में आई।
संविधान सभा के सत्रों की सूची:–
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
ब्लॉग पढ़ने के लिए धन्यवाद। यदि कोई उत्तम सुझाव अथवा शिक्षा से संबंधित कोई अन्य टॉपिक जिसको आप जानने के लिए उत्सुक है तो नीचे कमेंट करके बताएं। यदि आपको कोई गलती नजर आ रही है या कोई संदेह है तो भी आप कृपया कमेंट करके अवश्य बताएं।। धन्यवाद।।